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प्रश्न : महावीर के भी विरोधी थे। क्या उनके विरोध की चिन्ता महावीर को नहीं थी ? अहिंसक व्यक्ति के भी विरोधी पैदा होना अहिंसा के विषय में संदेह पैदा करता है ।
उत्तर : ऐसी धारणा रही है कि जो अहिंसक है उसका कोई विरोधी नहीं होना चाहिए | क्योंकि जिसके मन में द्वेष, विरोध, घृणा, हिंसा नहीं है, उसके प्रति घृणा, हिंसा और द्वेष क्यों होना चाहिये ? ऊपर से देखे जाने पर यह बात बहुत सोधी और साफ मालूम पड़ती है । लेकिन जीवन ज्यादा जटिल है और जितने सरल सिद्धान्त होते हैं, जीवन उतना सरल नहीं है । सच तो यह है कि पूर्ण अहिंसक व्यक्ति के विरोधी पैदा होने की सम्भावना अधिक है । उसके कारण हैं । पहला कारण तो यह है कि हम सब हिंसक हैं तो हिंसक से हमारा ताल-मेल बैठ जाता है । अहिंसक व्यक्ति हमारे बीच एकदम अजनबी हैं,
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उसे बरदाश्त करना भी मुश्किल है । बरदाश्त न करने के कई कारण हैं । पहली बात यह है कि अहिंसक व्यक्ति की मौजूदगी में हम इतने ज्यादा निन्दित प्रतीत होने लगते हैं, इतने ज्यादा दीन-हीन, इतने ज्यादा क्षुद्र, कि हम निन्दित होने का बदला लिए बिना नहीं रह सकते। हम बदला लेंगे ही। पूर्ण अहिंसक - व्यक्ति हिंसक व्यक्ति के मनों में अनजाने हो तीव्र देता है । यह भावना हिंसा के कारण पैदा होती है ।
बदले की भावना पैदा कर
महावीर जैसे व्यक्ति को अनिवार्य है कि लाखों विरोधी मिल जाएं। लेकिन इससे उनकी अहिंसा पर संदेह नहीं होता। इससे खबर मिलती है कि आदमी इतना अजनवी था कि हम सब उसे स्वीकार नहीं कर सकते थे और जब हम उसे स्वीकार भी करेंगे तब हम उसे आदमी न रहने देंगे; हम उसे भगवान् बना