SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 438
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्नोत्तर - प्रवचन- १६ ५१३ तो महावीर का मन कैसा हुआ होगा ? यानी इन स्थितियों में महावीर के भीतर क्या होता है ? - असल में महावीर होने का मतलब हो यह है कि भीतर अब कुछ भी नहीं होता । जो होता है वह सब बाहर होता है । यही महावीर होने का अर्थ है, यही क्राइस्ट होने का अर्थ है, यही बुद्ध होने का अर्थ है, यही कृष्ण होने का अर्थ है कि अब भीतर कुछ भी नहीं होता । भीतर बिल्कुल अछूता छूट जाता है। जैसे एक दर्पण है और उसके सामने से कोई निकलता है, जैसा व्यक्ति हैसुन्दर या कुरूप - वैसी तस्वीर बन जाती है । व्यक्ति निकल गया, तस्वीर मिट गई, दर्पण रह जाता है। इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह दर्पण सुन्दर व्यक्ति को कुछ ज्यादा रस से झलकाए, कुरूप को कम रस से झलकाए । सुन्दर है कि कुरूप है, कौन गुजरता है सामने से, इससे कोई मतलब नहीं है । दर्पण का काम है कलका देना । लेकिन एक फोटो-प्लेट है वह भी दर्पण का काम करती है लेकिन बस एक ही बार । क्योंकि जो भी उस पर अंकित हो जाता है उसे पकड़ लेती है, फिर उसे छोड़ नहीं पाती । इसका मतलब यह हुआ कि दर्पण की घटनाएँ सब बाहर ही घटती हैं, भीतर नहीं घटतीं । फोटो-प्लेट में भीतर घटना घट जाती है। बाहर से कोई निकलता है और भीतर घट जाता है। बाहर से तो निकल ही गया लेकिन फोटो-प्लेट फंस गई । वह तो पकड़ गई भीतर से । ' दो तरह के चित्त हैं जगत् में, फोटो-प्लेट की तरह या दर्पण की तरह काम करने वाले । फोटो-प्लेट की तरह जो काम कर रहे हैं उन्हीं को राग-द्वेष ग्रस्त कहते हैं । असल में फोटो-प्लेट बड़ा राग-द्वेष रखती है । राग-द्वेष का मतलब है जकड़ती है जल्दी, पकड़ती है जल्दी, फिर छोड़ती नहीं । राग भी पकड़ता है, द्वेष भी पकड़ता है। दोनों पकड़ते हैं । एक मित्र की तरह पकड़ता है, एक शत्रु की तरह पकड़ता है । दोनों पकड़ लेते हैं और चित्त की, जो दर्पण' की निर्मलता हैं, वह खो जाती है। हम सब फोटो-प्लेट की तरह काम करते हैं, इसलिए बड़ी मुसीबत में पड़े होते हैं । एकदम चित्त भरता जाता है, खाली नहीं होता और फिर स्थिति पकड़ी जाती है । और कोई स्थिति ऐसी नहीं है जो हमारे पास से अस्पर्शित निकल जाए । महावीर जैसे व्यक्ति दर्पण की तरह जीते हैं । समाधिस्थ व्यक्ति दर्पण की तरह जीता है। वह सुनता है; कोई सम्मान करता है तो वह सुनता है । ३३ कोई गाली देता है तो लेकिन जैसे सम्मान
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy