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महावीर : मेरी दृष्टि में
.. प्रश्न : जीवन की भिन्न-भिन्न प्रतिकूल परिस्थितियों में महावीर की मानसिक स्थिति का विश्लेषण उपलब्ध नहीं होता। आज जो साहित्य उपलब्ध है, उसके आधार पर उनको अंतरंग स्थिति का स्पष्टीकरण क्या हो सकेगा?
उत्तर : यह बहुत बढ़िया सवाल है। बढ़िया इसलिए है कि हम सबके मन में उठ सकता है कि भिन्न-भिन्न अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियों में महावीर जैसे व्यक्ति को चित्तदशा क्या होगी? कोई उल्लेख नहीं है। तो कोई सोच सकता है क उल्लेख इसलिए नहीं है कि महावीर ने कभी कुछ कहा न हो। मगर यह कारण नहीं है। उल्लेख न होने का कारण दूसरा है जो कि बहुत गहरा, बुनियादी है।
महावीर जैसी चेतना की अभिव्यक्ति में परिस्थितियों से कोई भेद नहीं पड़ता। इसलिए भिन्न-भिन्न परिस्थिति कहने का कोई अर्थ नहीं है। भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में प्रतिकूल, अनुकूल में चित्त सदा समान है। जैसे कि किसी ने गाली दी तो हम क्रुद्ध होते हैं और किसी ने स्वागत किया तो हम आनन्दित होते हैं। प्रत्येक स्थिति में हमारा चित्त रूपान्तरित होता है। जैसी स्थिति होती है वैसा चित्त हो जाता है। इसी को महावीर बन्धन की अवस्था कहते है । स्थिति जैसी होती है, वैसा चित्त को होना पड़ता है । फिर हम बंधे हुए हैं । स्थिति दुःख की होती है तो हमें दुःखी होना पड़ता है। स्थिति सुख को होती है तो हमें सुखी होना पड़ता है। इसका मतलब यह हुआ कि चित्त की अपनो कोई दशा नहीं है। सिर्फ बाहर की स्थिति जो मौका दे देती है चित्त वैसा हो जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि चेतना अभी उपलब्ध हो नहीं हुई। अभी हम उस जगह नहीं पहुंचे हैं जहाँ स्थितियां कोई फर्क नहीं लाती है, जहां सुख आए, दुःख आए तो प्रतिकूल और अनुकूल जैसी चीज ही नहीं होती।
महावीर के अंतरंग चित्त में क्या हो रहा है ? किसी दिन बहुत शिष्य इकट्ठे हुए होंगे तो महावीर का मन कैसा है ? किसी दिन कोई नहीं आया होगा गांव में सुनने तो महावोर का मन कैसा है ? किसी दिन सम्राट् आए होंगे सुनने और चरणों में लाखों रुपये रखे होंगे और किसी दिन कोई भिखारी आया होगा और उसने कुछ नहीं रखा होगा तो महावीर का मन कैसा हुआ होगा ? किसी गांव में स्वागत-समारम्भ हुए, होंगे, फल-मालाएं चढ़ी होंगी और किसी गाँव में पत्थर फेंके गए होंगे, गालियाँ दी गई होंगी और गांव के बाहर खदेड़ दिया गया होगा