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________________ ५०२ महावीर : मेरी दृष्टि में समय तो पहले चाहिए ही ताकि प्रारम्भ हो सके। और अगर समय पहले है, स्थान पहले है तो सब पहले हो गया। क्योंकि इस जगत् में मौलिक रूप से दो ही तत्त्व है गहराई में-समय और स्थान । ___ महावीर कहते हैं कि प्रारम्भ की बात ही हमारी नासमझी से उठी है । अस्तित्व का कभी कोई प्रारम्भ नहीं हुआ और जिसका कभी कोई प्रारम्भ न हुआ हो उन्हीं कारणों से उसका कभी अन्त भी नहीं हो सका । क्योंकि अन्त होने का मतलब होगा कि एक दिन कुछ भी न बचे । यह कैसे होगा ? अस्तित्व अनादि है और अनन्त है। न कभी शुरू हुआ है, न कभी अन्त होगा । सदा है, सनातन है। लेकिन रूपान्तरण रोज होता है। कल जो रेत था वह आज पहाड़ है, आज जो पहाड़ है वह कल रेत हो जाएगा। लेकिन होना नहीं मिट जाएगा। रेत में भी वही था, पहाड़ में भी वही होगा। आज जो बच्चा है, कल जवान होगा, परसों बूढ़ा होगा। बाद बिदा हो जाएगा। लेकिन जो बच्चे में था वही जवान में होगा, वही बुढ़ापे में होगा, वही मृत्यु के क्षण में बिदा भी ले रहा होगा । वह जो था, वह निरन्तर होगा। अस्तित्व का अनस्तित्व होना असम्भव है और अनस्तित्व से भी अस्तित्व नहीं आता है। इसलिए महावीर ने स्रष्टा की धारणा ही इन्कार कर दी है। महावीर ने कहा कि जब सृष्टि शुरूआत ही नहीं होती तो शुरूआत करने वाले की धारणा को क्यों बीच में लाना है ? जब शुरूआत ही नहीं होती तो स्रष्टा की कोई जरूरत नहीं है । यह बड़े साहस की बात थी उन दिनों। महावीर ने कहा सृष्टि है और स्रष्टा नहीं है। क्योंकि अगर स्रष्टा होगा तो प्रारम्भ मानना पड़ेगा और महावीर कहते हैं कि स्रष्टा भी हो तो भी शून्य से प्रारम्भ नहीं हो सकता । और फिर मजे की बात यह है कि अगर स्रष्टा था तो फिर शून्य कहना व्यर्थ है । तब था ही कुछ । और उस होने से कुछ होता रहेगा । जैसे साधारणतः ' हम जिसको आस्तिक कहते हैं वस्तुतः वह आस्तिक नहीं होता। साधारणतः आस्तिक की दलील यह है कि कोई चीजों को बनाने वाला है तो परमात्मा भी होना चाहिए। लेकिन नास्तिकों ने और गहरा सवाल पूछा कि अगर सब चीजों का बनाने वाला है तो फिर परमात्मा को बनाने वाला भी होना चाहिए । और तब बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी। अगर परमात्मा का स्रष्टा भी मान लें तो फिर अन्तहीन विवाद खड़ा हो जाएगा। क्योंकि फिर उसका बनाने वाला पाहिए, फिर उसका, फिर उसका, इसका अन्त कहाँ होगा ? किसी भी कडी पर यही सवाल उठेगा : इसका बनाने वाला कौन है ?
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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