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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१६
महावीर कहते हैं कि आस्तिक भूल में है और इसलिए नास्तिक को उत्तर नहीं दे पा रहा है क्योंकि मास्तिक बुनियादी भूल कर रहा है। महावीर परम आस्तिक हैं खुद भी । लेकिन वह कहते हैं कि बनाने वाले को बीच में लाने की जरूरत नहीं है । अस्तित्व पर्याप्त है। कोई बनाने वाला नहीं है। इसलिए यह भी सवाल नहीं है कि उसके बनाने वाला कहाँ है ? महावीर के परमात्मा स्रष्टा की धारणा अस्तित्व की गहराइयों से निकलती है अस्तित्व के बाहर से नहीं माती। अस्तित्व अलग और परमात्मा अलग बैठकर उसको बना रहा है जैसे कि कुम्हार घड़ा बना रहा हो, ऐसा नहीं है कोई परमात्मा। इसी अस्तित्व में जो सारभूत विकसित होते-होते अन्तिम क्षणों तक विकास को उपलब्ध हो जाता है, वही परमात्मा है। परमात्मा की धारणा में महावीर के लिए विकास है यानी परमात्मा की धारणा अस्तित्व का सारभूत अंश है जो विकसित हो रहा है।
साधारण आस्तिक की धारणा है कि परमात्मा अलग बैठा है और जगत् को बना रहा है। तब प्रारम्भ की बात आ जाती है। उसी आस्तिक की नासमझो को वैज्ञानिक भी पकड़े हुए चला जाता है। हालांकि वह ईश्वर से इन्कार कर देता है। लेकिन फिर वह सोचता है कि प्रारम्भ कब हुआ? हाँ, यह हो सकता है कि इस पृथ्वी का प्रारम्भ कब हुआ इसका पता चल जाएगा। इस पृथ्वी का कब अन्त होगा, यह भी पता चल जाएगा लेकिन पृथ्वी जीवन नहीं है, जीवन का एक रूप है। जैसे मैं कब पैदा हुआ, पता चल जाएगा। मैं कब मर जाऊँगा, पता चल जाएगा। लेकिन मैं जीवन नहीं हूँ, जीवन का सिर्फ एक रूप हूँ। जैसे हम एक सागर में जाएं। एक लहर कब पैदा हुई पता चल जाएगा । एक लहर कब गिरी यह भी पता चल जायगा । लेकिन लहर सिर्फ एक रूप है सागर का। सागर कब शुरू हुआ? सागर का कब अन्त होगा ? और अगर सागर का पता चल जाए तो फिर सागर भी एक लहर है बड़े विस्तार को। ___ अन्ततः जो है गहराई में वह सदा से है। उसके ऊपर की लहरें आई हैं, गई हैं, बदली हैं। आएँगी, जाएंगी, बदलेंगी। पर जो गहराई में है, जो केन्द्र में है, वह सदा से है। और यह हमारे ख्याल में आ जाए तो प्रारम्भ का प्रश्न समाप्त हो जाता है, अन्त का प्रश्न भी समाप्त हो जाता है। सूरज ठंडा होगा क्योंकि सूरज गर्म हुआ है। जो गर्म होगा, वह ठंडा होगा। वक्त कितना लगता है, यह दूसरी बात है। एक दिन सूरज ठंडा था, एक दिन सूरज फिर ठंडा हो जाएगा। एक दिन पृथ्वी ठंडी होगी। इनके भी जीवन है । असल में हमें ख्याल