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________________ आपने पूछा है कि इस जगत् का, इस जीवन का प्रारम्भ कब हुआ, कैसे हुमा ? महावीर के प्रसंग में भी यह बात बड़ी महत्त्वपूर्ण है। महावीर उन थोड़े से चिन्तकों में से एक हैं जिन्होंने प्रारम्भ की बात को ही स्वीकार नहीं किया। महावीर कहते हैं कि प्रारम्भ सम्भव ही नहीं है। अस्तित्व का कोई प्रारम्भ नहीं हो सकता। अस्तित्व सदा से है। और कभी ऐसा नहीं हो सकता कि अस्तित्व न रह जाए। प्रारम्भ की और अन्त की बात ही वह इन्कार करते हैं । और मैं भी उनसे सहमत हूँ। प्रारम्भ की धारणा ही हमारी नासमझी से पैदा होती है। क्योंकि हमारा प्रारम्भ होता है और अन्त होता है इसलिए हमें लगता है कि सब चीजों का प्रारम्भ होगा और अन्त होगा। लेकिन अगर हम अपने भीतर गहरे में प्रवेश कर जाएँ तो हमें पता चलेगा कि हमारा भो कोई प्रारम्भ नहीं, कोई अन्त नहीं। एक चीज बनती है, मिटती है तो हमें ख्याल हो जाता है कि जो भी बनता है वह मिटता है। लेकिन बनना और मिटना प्रारम्भ और अन्त नहीं है । क्योंकि जो चीज बनती है, वह बनने के पहले किसी दूसरे रूप में मौजूद होती है और जो चीज मिटती है वह मिटने के बाद फिर किसी दूसरे रूप में मौजूद होती है । महावीर कहते हैं कि जीवन में सिर्फ रूपान्तरण होता है । न तो प्रारम्भ है और न कोई अन्त है। प्रारम्भ असम्भव है क्योंकि अगर हम यह माने कि कभी प्रारम्भ हुआ तो यह भी मानना पड़ेगा कि उसके पहले कुछ भी न था। फिर प्रारम्भ कैसे होगा? अगर उसके पहले कुछ भी न हो तो प्रारम्भ होने का उपाय भी नहीं। अगर हम यह मान लें कि कुछ भी नहीं था, समय भी नहीं था, स्थान भी नहीं था तो प्रारम्भ कैसे हुमा ? प्रारम्भ होने के लिए कम से कम
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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