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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१५ ४७३ बदल गया, बताना बहुत मुश्किल है । एक क्षण तक झलक थी सुख की, दूसरे क्षण में दुःख शुरू हो गया। एक प्रेमी है, एक प्रेयसी है। दोनों घड़ी भर मिलते हैं। बड़ा सुखद है । फिर पति-पत्नी हो जाते हैं और बड़ा दुखद हो जाता है। पश्चिम में जहाँ प्रेमविवाह प्रचलित है वहाँ एक अनुभव हुआ कि प्रेमी जितना प्रेयसी को सुखी करता है उतना ही दुःखी कर देता है । यह बड़ी अजीब बात है । सुख कब दुःख में बदल जाता है कहना मुश्किल है। सब सुख दुःख में बदल सकते हैं और ऐसा कोई दुःख नहीं जो सुख में न बदल सके। सब दुःख भी सुख में बदल सकते हैं । कितना ही गहरा दुःख है उसमें भी आप सम्भावनाएं देख सकते हैं सुख की। एक मां है। वह नौ महीने पेट में बच्चे को रखती है। दुःख हो उठाती है। प्रसव है, बच्चे का जन्म है। असह्य दुःख उठाती है लेकिन सब दुःख सुख में बदल जाता है। आगे की सुख की आशा दुःख को झेलने में समर्थ बना देती है । प्रसव-पीड़ा भी एक सुख की तरह आती है । बच्चे का बोझ भी सुख की तरह आता है। और उसे बच्चे को बड़ा करना लम्बे दुःख की प्रक्रिया है। लेकिन मां का मन उसे सुख बना लेता है। दुःख को हम सुख बना सकते हैं। अगर आशा, सम्भावना, आकांक्षा, कामना तीव्र हो तो दुःख सुख बन जाता है। सुख को भी हम दुःख बना सकते हैं। अगर सुख में सब आशा सब सम्भावना क्षीण हो जाए तो सुख दुःख बन जाता है। ___यानी इसका मतलब यह हुआ कि सुख और दुःख में कोई मौलिक भेद नहीं है, हमारी दृष्टि का भेद है। हम कैसे देखते हैं इस पर सब निर्भर करता है। हमारे देखने पर ही सुख दुःख का रूपान्तरण हो जाता है। एक आदमी के पैर में घाव है और डाक्टर आपरेशन करता है। आपरेशन का दुःख भी सुख बन जाता है क्योंकि वहाँ पीड़ा में छुटकारे की आशा काम कर रही है। आदमी जहरीली से जहरीली दवाई, कड़वी से कड़वी दवाई पी जाता है क्योंकि वहाँ. बीमारी से दूर होने की माशा काम करती है। आशा हो तो दुःख को सुख बनाया जा सकता है । और आशा क्षीण हो जाए तो सब सुख फिर दुःख हो जाते हैं । महावीर कहते हैं कि न तो तुम किसी को सुख पहुँचाओ, न तुम किसी को दुःख पहुँचामओ । जिस दिन कोई व्यक्ति उस स्थिति में पहुँच जाता है जहाँ वह न किसी को सुख पहुँचाना चाहता है, न किसी को दुःख पहुँचाना चाहता है वहीं से वह व्यक्ति सबको आनन्द पहुँचाने का कारण बन जाता है । इसे समझ लेना जरूरी है।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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