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________________ ४७२ महावीर : मेरी दृष्टि में पहुँचा सकता। मैं लेना चाहूँ तो ही ले सकता हूँ । इसलिए महावीर ने पहुंचाने पर जोर हो नहीं दिया, बात ही छोड़ दी । हाँ, जो लेना चाहे, उसे दे देना क्योंकि नहीं दोगे तो उसे दुःख मत पहुँचाना। अगर कोई तुमसे सुख लेना चाहे तो दे देना, वह भी सिर्फ इसीलिए कि अगर तुम न दोगे तो उसे दुःख पहुँचेगा। लेकिन तुम सुख पहुँचाने मत चले जाना। क्योंकि अगर तुम सुख पहुँचाने गए तो सिवाय दुःख पहुँचाने के कुछ भी नहीं कर पाओगे। आक्रामक सुख पहुंचाने वाला आदमी दुःख ही पहुंचाता है । अगर जबरदस्ती हम किसी को सुखी करना चाहेंगे तो हम उसे दुःखो कर देंगे । जबरदस्ती में किसी को भी सुखी नहीं किया जा सकता है। जबरदस्ती में हिंसा शुरू हो जाती है। तो महावीर को पकड़ बहुत गहरी है। और भी एक गहराई है जो कि आज तक महावीर को समझने वाले लोगों की समझ में नहीं आई। और वह यह है कि अन्ततः परम स्थिति में जहां अहिंसा पूर्ण रूप से प्रकट होती है, या प्रेम पूर्ण रूप से प्रकट होता है-कोई भी नाम दें-उस परम स्थिति में न विधेथ है, न निषेध है। परम स्थिति में दोनों नहीं हैं। यह प्रश्न भी पूछा है आपने कि उन्होंने कभी किसी के शरीर को सहायता क्यों नहीं पहुंचाई ? गिरे हुए को क्यों नहीं उठाया ? प्यासे को पानी क्यों नहीं पिलाया ? भूखे को रोटी क्यों नहीं खिलाई ? बीमार के पैर क्यों नहीं दाबे? किसी के शरीर की सेवा क्यों नहीं की ? सवाल तो पूछने जैसा है। उसका भी कारण है । परम अहिंसा की स्थिति में व्यक्ति किसी को दुःख तो पहुंचाना ही नहीं चाहता, सुख भी पहुंचाना नहीं चाहता। क्योंकि बहुत गहरे में देखने पर सुख और दुःख एक ही चीज के दो रूप हैं। जिसे हम सुख कहते हैं वह दुःख का ही एक रूप है और जिसे हम दुःख कहते हैं, वह भी सुख का ही एक रूप है। घहत गहरे में जो देखेगा वह पाएगा कि जिसे हम सुख कहते हैं उसकी यात्रा अगर थोड़ी बढ़ा दी जाए तो वह दुःख में बदल जाता है । आप भोजन कर रहे हैं, बड़ा सुखद है । और आप ज्यादा भोजन करते चले जाएं तो सुख दुःख में बदल जाता है । आप मुझे प्रेम से आकर मिलें, मैंने आपको गले लगा लिया। बड़ा सुखद है एक तण, दो घृण । लेकिन मैं छोड़ता ही नहीं अब आप तड़फचे लगेंगे कि बाहों से कैसे छूट जाएं। पांच मिनट और तब सुख दुःख में बदल जाता है। और अगर आधा घंटा हो गया तो आप पुलिस वाले को चिल्लाते है कि 'मुझे बचाइये यह आदमी मुझे छोड़ता नहीं।' किस क्षण पर सुख दुःख में
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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