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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१५ ४७१ लिए महंगा पड़ा क्योंकि अहिंसा का अर्थ पकड़ा गया कि किसी को दुःख नहीं देना है बस बात खत्म हो गई। अपने को इससे ज्यादा कोई प्रयोजन नहीं है । और प्रयोजन तब बनता है जब हम किसी को सुख देने जाएं। अच्छा होता कि महावीर प्रेम शब्द का प्रयोग करते। लेकिन महावीर ने प्रेम का प्रयोग नहीं किया । यह बहुत कीमती बात है । और महावीर की दृष्टि बहुत गहरी है। - अहिंसा शब्द के प्रयोग करने में कई कारण हैं। पहला कारण यह है कि किसी को दुःख नहीं देना। यह कोई साधारण बात नहीं है । इसका मतलब इतना ही नहीं होता कि हम किसी को चोट न पहुँचाएं। अगर बहुत गहरे में देखें तो किसी क्षण में किसी को सुख न देना भी उसको दुःख देना है। उतने दूर तक अनुयायी की पकड़ नहीं हो सकी। मैं आपको दुःख न हूँ यह तो ठीक है । बहुत मोटा सूत्र हा कि आप को चोट न पहुंचाऊँ, आपकी हिंसा न करूं, तलवार न मारूं। लेकिन किसी क्षण यह भी हो सकता है कि मैं आपको सुख न पहुँचाऊँ तो निश्चित रूप से आपको दुःख पहुँचे । लेकिन यह पकड़ में आना साधारणतः मुश्किल था। महावीर इसको साफ कह सकते थे। लेकिन उन्होंने साफ नहीं कहा और उनके भी कारण हैं। क्योंकि महावीर की गहरी समझ यह है कि कभी-कभी किसी को सुख पहुंचाने से भी उसको दुःख पहुंच जाता है। यानी कभी-कभी आक्रामक रूप से किसी को सुख पहुंचाने की चेष्टा भी उसको दुःख पहुँचा सकती है। यह जरूरी नहीं कि आप सुख पहुँचाना चाहते हों इससे दूसरे को सुख पहुँच जाए। सुख पहुँचाने में भी दुःख पहुंचाया जा सकता है। सच तो यह है कि अगर कोई कोशिश करे किसी को सुख पहुँचाने की तो उसको दुःख पहुँचाता ही है। अगर बाप अपने बेटे को सुख पहुंचाने की कोशिश में लग जाए, उसके सुधार, उसकी नीति की व्यवस्था करने लगे और सोचे कि इससे उसे सुख पहुंचेगा तो सम्भावना इस बात की है कि बेटे को दुःख पहुँचेगा, और बाप जो भी चाहता है बेटा उसके विपरीत जाएगा इसलिए अच्छे बाप अच्छे बेटों को पैदा नहीं कर पाते । बुरे बाप के घर अच्छा बेटा पैदा भी हो सकता है । अच्छे बाप के घर अच्छा बेटा पैदा होना अपवाद है। अच्छा बाप बेटे को अनिवार्यतः बिगाड़ने का कारण बनता है। क्योंकि वह उसे इतना सुख पहुंचाना चाहता है बोर इतना शुभ बनाना चाहता है कि बेटे पर उसका यह सुख बोझ हो जाता है। __ यह बड़े मजे की बात है कि हम यदि किसी से सुख लेना चाहें तो ही ले सकते हैं । सुख इतनो सूक्ष्म चित्त दशा है कि कोई मुझे पहुँचाना चाहे तो नहीं
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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