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________________ ४७० महावीर : मेरी दृष्टि में । आध्यात्मिक विज्ञान के सम्बन्ध में तिब्बत के पास सबसे बड़ी सम्पदा है। और दलाई लामा के लिए उपयोगी रही है कि वह सब की फिक्र छोड़ दे, तिब्बत को फिक्र छोड़ दे। तिब्बत का बनना मिटना उतना कीमती नहीं है। तिम्बत के लोग इस राज्य में रहते हैं या उस राज्य में, यह कोई बड़े मूल्य की बात नहीं है । वे किस तरह की व्यवस्था बनाते हैं समाज की, शासन की, वह भी मूल्यवान् नहीं है। मूल्यवान् यह है कि इन डेढ़ हजार वर्षों में एक प्रयोगशाला की तरह तिब्बत ने जो काम किया है वे सूत्र नष्ट न हो जाएं, उनको भाग कर बचाना जरूरी है । न मेहर बाबा से कोई मतलब है मुझे, न दलाई लामा से कोई मतलब है । मेरा मतलब कुल इतना है कि एक दिशा वह है जहां हम परम कल्याण के लिए कुछ बचा रहे होते हैं और एक दिशा वह है जहाँ हम अपने कल्याण के लिए कुछ बचा रहे होते हैं । दोनों में फर्क करना जरूरी है। प्रश्न : (i) महावीर ने विधायक शब्द 'प्रेम' का उपयोग न करके निषेषात्मक शब्द, 'अहिंसा का उपयोग क्यों किया। प्रश्न : (ii) महावीर ने किसी की शारीरिक सहायता क्यों नहीं की? उत्तर : अहिंसा शब्द से ही निषेध का, नकारात्मक का बोध होता है । अहिंसा शब्द नकारात्मक है । महावीर ने क्यों उस शब्द का चुना? वह 'प्रेम' शब्द भी चुन सकते थे । 'प्रेम' विधायक शब्द है, प्रेम का मतलब होता है किसो को सुख देना । अहिंसा का मतलब होता है किसी को दुःख न देना। यानी अगर मैंने आपको दुःख नहीं दिया तो मैं अहिंसक हो गया। मगर इतने से ही बात हल नहीं होती। मैंने आपको सुख दिया कि नहीं ? अगर सुख दिया तो ही प्रेम पूरा होता है। 'प्रेम' तो विधायक शब्द है और जीसस ने प्रेम शब्द का प्रयोग किया है । अहिंसा निषेधात्मक शब्द है और महावीर ने अहिंसा शब्द का प्रयोग किया है। यह समझना बहुत जरूरी है । महावीर क्यों ऐसा प्रयोग करते हैं ? इसमें बड़ी गहराइयां छिपी हुई हैं । ऊपर से देखने से यही लगेगा कि 'प्रेम' शब्द का प्रयोग ही ठीक होता और जहाँ तक समाज का संबंध है, शायद ज्यादा ही ठीक होता। क्योंकि जिन लोगों ने महावीर का अनुगमन किया उन लोगों ने 'किसी को दुःख नहीं देना' यह सूत्र बना लिया। इसी कारण वे सिकुड़ते चले गए क्योंकि किसी को दुःख नहीं देना' इतना ही उनका विचार रहा, सुख देने की तो बात नहीं। चींटी पर से न दबे इतना काफी हो गया। चींटी भूखी मर जाए, इससे कोई प्रयोजन नहीं है हमारा । हमने चींटी को पैर से दबा कर नहीं मार, हमारा काम पूरा हो गया। महावीर का 'अहिंसा' शब्द समाज के
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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