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________________ ૪૬૬ महावीर : मेरी दृष्टि में साथ हो कि मैं हवाई जहाज को नहीं जाने दूँगा चाहे मुझे मार डालो । प्रेरणा अपने ही जीवन अस्तित्व की है। खुद तो बच गए हैं, हवाई जहाज तो चला गया । उस मकान में जिसमें वह ठहरने गए थे, खुद तो नहीं ठहरे लेकिन किसी को नहीं कहा कि इसमें मत ठहरो, मकान रात को गिर जाएगा। मेहर बाबा को मैं गलत कहूँगा क्योंकि उन्हें बचने की आकांक्षा है और दलाई को मैं गलत नहीं कहूँगा क्योंकि उन्हें बचने की आकांक्षा ही नहीं है । दलाई के लिए बचने का यही सरल उपाय होता कि वह वहीं रह जाता है और चीनियों के जाता । दलाई मुश्किल में पड़ गया और बचा रहा है कुछ जो सबके काम का है । इसमें फर्क समझ लेना । मेहरबाबा बच रहे हैं खुद, दलाई बचा रहा है कुछ जो सबके काम का है। और उस बचाने में दलाई अपनी जान को दांव पर लगा रहा है । दलाई का भागना दाब पर लगाना है अपने को । और एक अर्थ में शायद वह कभी नहीं लौट सकेगा अब वह रुक भी जाता, सुलह कर लेता और वह राजा भी बना रह सकता था। लेकिन जहाँ तक सबके हित में आने वाली कोई बात हो, और कुछ ऐसी सम्पदा हो जो मेरे होने न होने से सम्बन्धित नहीं है और जो पीछे भी काम पड़ सकती है उसके बचाने के लिए जरूर कुछ श्रम किया जा सकता है । । फर्क सिर्फ इतना है कि तुम अपने या तुम्हारा कोई स्वार्थ नहीं है । इस दृष्टि सही कहूँगा । निर्णायक बात यह है कि दलाई को कोई छुरा मार दे महावीर भी यही श्रम कर रहे हैं । स्वार्थ के लिए उपयोग कर रहे हो से मैं एक को गलत और दूसरे को व्यक्ति का कोई अपना स्वार्थ निहित है या नहीं। तो दिक्कत नहीं है, कठिनाई नहीं है । लेकिन जो उसके पास है और निश्चित हो एक ऐसा गुह्य विज्ञान उसके पास है वह इस समय पृथ्वी के दो-चार लोगों की समझ में आ सकता है। क्योंकि पिछले डेढ़-दो हजार वर्षों से, सारी दुनिया कर रहा है । दूसरा महायुद्ध हुआ। दूसरा महायुद्ध जर्मन जीत सकता था सिर्फ एक आदमी जर्मनी छोड़कर भाग गया और जर्मनी को हारना पड़ा। वह आइंस्टीन था। कारण नहीं था । लेकिन जो रहस्य थे, वह एक आइंस्टीन के हाथ में थे । और वह था यहूदी । के कारण आइंस्टीन ने जर्मनी को छोड़ा था । जो एटम बम 'बना, वह बलिन में बना होता । रहस्य एक आदमी के पास था । वह रहस्य अमेरिका में उपयोगी हुआ । एटम बम बना, हीरोशिमा पर गिरा। हो सकता से अलग, तिब्बत एक प्रयोग । जर्मनी के हारने का दूसरा आदमी के और यहूदियों के हाथ में थे А सताए जाने अमेरिका में
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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