SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 397
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ '४६३ प्रश्नोत्तर - प्रवचन- १५ जाता है । क्योंकि जिस तल पर हम समझ सकते थे उस तल पर उनका कोई भी रूप नहीं बनता है कि वे कैसे आदमी हैं । महावीर अनम्र हैं या विनम्र हैं यह तय करना मुश्किल है क्योंकि ऐसा कोई प्रसंग ही नहीं जिसमें वह कोई भी घोषणा करते हों । तब हमारे ऊपर ही निर्भर रह जाता है कि हम निर्णय कर लें और हमारा निर्णय वही होने वाला है जो हमारी तोल है, जो हमारा मापदण्ड है । महावीर उस तोल के बाहर हैं । इसलिए मैं कहता हूँ कि महावीर से ज्यादा निरहंकारी थोड़े ही लोग हुए हैं । हाँ, महावीर से ज्यादा नम्र कई लोग हुए हैं । महावीर से ज्यादा अहंकारी लोग भी हुए हैं लेकिन महावीर से ज्यादा निरहंकारो लोग मुश्किल से हुए हैं । महावीर से ज्यादा नम्र आदमी मिल जाएगा जो झुक-झुक कर नमस्कार करेगा । महावीर झुकेंगे नहीं, क्योंकि कौन झुके ? किसके लिए झुके ? फिर जब कोई आदमी झुकता है तो हम कहते हैं कि वह नम्र है लेकिन वह किसलिए झुकता है ? किसी अहंकार की पूजा में, किसी अहंकार के पोषण में वह झुकता है । और महावीर कहते हैं कि मेरा अहंकार तो बुरा है ही, किसी का भी अहंकार बुरा है । मैं झुकूं और आप की बोमारी बढ़ाऊँ ? मैं झुकूं आपके चरणों में और आपके दिमाग को फिराऊँ ? मैं झुकूंगा तो आपको बड़ा रस आएगा कि यह आदमी बड़ा नम्र है। लेकिन रस इसीलिए आएगा कि आपके अहंकार को तृप्ति मिलती चली जाएगी। महावीर से कोई पूछे तो वह कहेंगे कि देवताओं का दिमाग भी आदमियों ने ही खराव किया है । अगर कहीं भगवान् भी है तो अब तक पागल हो गया होगा । यह जो झुकना चल रहा है दूसरे के अहंकार का पोषण करता है । निरहंकारी न तो अहंकार में जीता है न अहंकार को पोषण देता है। इसलिए उसके जीवन का तल, उसकी अभिव्यक्ति बिल्कुल बदल जाती है । उसे पकड़ पाना मुश्किल हो जाता है कि हम उसे कहाँ पकड़ें, और कहाँ तोलें । महावीर के साथ भी यही कठिनाई मालूम होती है । प्रश्न : प्रेम में भी कोई शर्त है क्या ? तो फिर महावीर की शर्त क्यों ? उत्तर : मैं कहता हूँ कि प्रेम सदा बेशर्त है, क्योंकि जहाँ शर्त है वहाँ सौदा । जहाँ हम कहते हैं कि मैं तब प्रेम करूंगा जब ऐसा हो; या तुम ऐसे हो जाओ या ऐसे बनो, तब मैं तुम्हें प्रेम करूंगा ऐसा' आदमी प्रेम को शर्त से बाँध रहा है और प्रेम को खो रहा है। महावीर की शर्तों की बात प्रेम के सम्बन्ध में नहीं है । महावीर ऐसा नहीं कहते कि जगत् ऐसा करे तो मैं प्रेम करूंगा, जगत् मुझे भोजन दे तो मैं करूँगा । नहीं, यह तो बात ही नहीं है प्रेम का मामला
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy