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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१५ नहीं झुका करते। और हम राम के दरबार के दरबारी हो गए। ऊपर से लगता है यह आदमी कितनी बढ़िया बात कह रहा है। लेकिन बड़े गहरे अहंकार से निकली बात मालूम पड़ती है। अभी इसे आदमी और राम में फर्क है और यह निरन्तर यह भी कहे चला जा रहा है कि सब में राम है। अकबर भर को छोड़ देता है, अकबर में 'राम' नहीं है। सब में 'राम' देखे चला जा रहा है और अकबर में अटक जाता है, और वहां उसका अहंकार घोषणा कर देता है कि 'मैं कोई ऐसा आदमी थोड़े ही हूँ कि आदमियों के दरबारों में बैठू; मैं तो राम के दरबार का दरबारो हूँ। यह घोषणा बहुत गहरे अहंकार की सूचना है। इससे यह मत समझ लेना कि जिन्होंने भगवान् को स्वीकार किया है, वे अहंकार-शून्य होंगे। हो सकता है यह अहंकार की अंतिम चेष्टा हो। अहंकार भगवान् को भी मुठ्ठो में लेना चाहता है। उसको तृप्ति नहीं होती। संसार को मुट्ठी में ले लेने से आखिर में भगवान को भी ले लेना चाहता है। महावीर के पास एक सम्राट् गया। और सम्राट ने कहा : सब है आपकी कृपा से । राज्य है, सम्पदा है, अन्तहीन विस्तार है, सैनिक है, सुख हैं, सुविधा है, शक्ति है, सब है। लेकिन इधर मैंने सुना है कि मोक्ष जैसी भी कोई चीज है। तो मैं उसको भी विजय करना चाहता हूँ। क्या उपाय है ? कितना खर्च पड़ेगा ? हंसे होंगे महावीर । सम्राट् है, सब जीतना चाहता है। उसने बहुत इन्तजाम कर लिया है। अब इधर खबर मिली है कि मोक्ष जैसी भी एक चीज है, बोर ध्यान जैसी भी एक अनुभूति है तो उसके लिए भी खर्च करने को तैयार है। यानी ऐसा न रह जाए कि कोई कहे कि इस आदमी को मोक्ष भी नहीं मिला, ध्यान भी नहीं मिला। महावीर ने उससे कहा कि खरीदने को ही निकले हो तो जो तुम्हारे ही गांव में एक श्रावक है उसके पास चले जाना। उससे पूछ लेना कि एक सामायिक कितने में बेचेगा, एक ध्यान कितने में बेचेगा। खरीद लेना, उसको उपलब्ध हो गया है। तो नासमझ सम्राट् उस आदमी के घर पहुंचा और हैरान हुआ देखकर कि वह बहुत दरिद्र आदमी है। उसने सोचा कि इसको तो पूरा ही खरीद लेंगे। सामायिक का क्या सवाल है। यानी इसमें कोई झंझट ही नहीं है। पूरे आदमी को चुकता खरोदा जा सकता है । यह तो बड़ी सरल बात है। तो उसने कहा कि महावीर ने कहा है कि सामायिक खरोद लो उस आदमी से जाकर । तो वह आदमी हंसने लगा। उसने कहा कि चाहो तो मुझे खरीद लो लेकिन सामायिक खरीदने का कोई उपाय नहीं।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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