SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 386
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर : मेरी दृष्टि में महावीर जैसे व्यक्ति जहाँ से भी हटते हैं, भागते नहीं-जहाँ, जहाँ आग है, हटते हैं । हटना एकदम विवेकपूर्ण है। और इसलिए भी हटते हैं कि जहाँजहाँ दुःख जन्मता है, जहाँ-जहाँ दुःख बढ़ता है और फैलता है, वहां खड़े रहने का क्या प्रयोजन है ? वहाँ से वे हटते हैं सिर्फ इसलिए कि और बेहतर जगह है जहाँ माग नहीं है। जैसे कि आप बीमार पड़े हैं, आप इलाज कराने चले जाएँ और डाक्टर बापसे कहे कि माप बड़े पलायनवादी हैं, बीमारी से भागते हैं। वह आदमी कहेगा कि मैं बीमारी से नहीं भागता। लेकिन बीमारी में खड़े रहने में न तो कोई बुद्धिमत्ता है, न कोई अर्थ है। मैं स्वास्थ्य की खोज में जाता हूँ। हम बीमार आदमी को कभी नहीं कहते कि तुम डाक्टर के यहाँ मत जाओ । एक बंधेरे में खड़ा आदमी सूरज की तरफ आता है तो हम नहीं कहते कि तुम पलायनवादी हो। लेकिन हम महावीर जैसे लोगों को पलायनवादी कहना चाहते हैं। उसका कारण सिर्फ यह है कि अगर महावीर जैसे लोगों को सिद्ध कर देते हैं पलायनवादी तो हम जहां खड़े हैं वहां से हटने की हमें जरूरत नहीं रह जाती। हम निश्चिन्त हो जाते हैं कि यह आदमी गड़बड़ है, हम वहां खड़े हैं, हम बिल्कुल ठीक हैं। हम सब मिलकर तय कर दें कि यह आदमी सिर्फ भगोड़ा है और हम बहादुर लोग हैं। हम जिन्दगी में खड़े हैं. उस जिन्दगी में जहाँ जिन्दगी है ही नहीं। और बहादुरो क्या है ? और उस बहादुरी से हमें क्या उपलब्ध हो रहा है ? जिन लोगों ने महावीर को 'महावीर' नाम दिया, उन लोगों ने महावीर को पलायनवादी नहीं समझा था। शायद कारण यह है कि हम अपनी कमजोरी की वजह से जहां से नहीं हट सकते हैं, वहां से महावीर अपने साहस को वजह से हट जाते हैं। लेकिन हम अपनी कमजोरी को भी छिपाते हैं, हम • उसके लिए कोई न्याययुक्त कारण खोज लेते हैं और कोई नहीं मानना चाहता कि हम कमजोर हैं। और तब हमारे बीच से अगर एक बहादुर आदमी हटता हो-बड़ी मुश्किल है हिम्मत जुटाना तो क्या वह पलायन है ? घर में आग लगी हो और घर में पचास मादमी हों और हर आदमी मानता ही न हो कि घर में आग लगी है तो जिस आदमी को आग लगी दिखाई पड़ती हो वह घर के बाहर निकलता हो तो लोग कहेंगे कि यह पलायनवादी है। हमने दुनिया के श्रेष्ठतम लोगों को सदा पलायनवादी कहा है। स्टीफेन जूड ने अात्महत्या की। लेकिन आत्महत्या करने के पहले उसने एक पत्र में लिखा कि ध्यान रहे, कोई यह न समझे कि मैं पलायनवादी हैं।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy