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________________ प्रश्नोतर-प्रवचन-१४ ४५३ और यह भी ध्यान रहे कि मैं कायर नहीं हूँ। बल्कि मेरा नतीजा तो यह है जिन्दगी भर का कि लोग चूंकि मरने की हिम्मत नहीं जुटा पाते, इसलिए जिन्दा रहे चले जाते हैं । मैं भी बहुत दिन तक हिम्मत नहीं जुटा पाया इसलिए जिन्दा रहा । इतना मुझे साफ दिखाई पड़ गया है कि इस तरह को जिन्दगो अगर रोज जीनी है तो मैं इसे तोड़ दूं। और ध्यान रहे कि मैं तोड़ता है तो सिर्फ इसलिए कि मैं हिम्मतवर हूँ और तुम नहीं तोड़ते हो क्योंकि तुम हिम्मतवर नहीं हो। लेकिन मैं जानता हूँ कि मेरे मरने के बाद लोग कहेंगे कि वह कायर था, पलायनवादी था, मर गया, भाग गया जिन्दगी से । ___यह आदमी बहुत कोमती बात कह रहा है। यह उस जगह खड़ा है जहाँ से आदमी या तो आत्महत्या करता है, या प्रात्मसाधना में जाता है । यह उस जगह खड़ा है जहाँ जिन्दगो व्यर्थ हो गई है, वही रोज सुबह का उठना, वही रोज शाम सो जाना, वहो काम, वहो क्रोध, वही लोभ । वही सब रोज-रोज, एक मशीन की तरह हम घूमते चले जाते हैं। कोई उस जगह पहुँच गया है जहाँ वह कहता है कि अगर यहो जिन्दगी है तो मैं खत्म करता हैं अपने को। ओर ध्यान रहे कि मैं कायर नहीं। मेरा भी मानना है कि वह कायर नहीं । वह गल्ती करता है, वह चूक गया है एक बिन्दु को जिसको महावीर नहीं चूकते । तो महावीर उस जगह तक पहुँचते हैं जहां दुनिया के सभी लोग जिनको जिन्दगी में क्रान्ति घटित होतो है, एक दिन पहुंचते हैं, जहाँ या तो आत्म-हत्या या साधना-दूसरा विकल्प नहीं रह जाता। या तो जैसे हम हैं उसको खत्म करो, शरीर से मिटा दो, या जैसे हम हैं, उसे बदलो आत्मिक अर्थों में ताकि हम दूसरे हो जाएं। जो आत्महत्या कर लेता है वह कायर नहीं है। है तो बहादुर हो, लेकिन वह भूल से भरा है, क्योंकि आत्महत्या से क्या होगा? जीवन की आकांक्षा फिर नये जीवन बना देगी। महावोर जैसे व्यक्ति आत्महत्या नहीं करते। आत्मा को ही रूपान्तरित करने में लग जाते हैं। आत्महत्या करने से क्या होगा? आत्मा को ही बदल डाल, नया जीवन कर लें लेकिन हमें दोनों ही भागे हुए लग सकते हैं। और इसके पीछे कारण भी है क्योंकि सौ में से निन्यानवें लोग निश्चित हो भागते हैं । सो संन्यासियों में से निन्यानवें संन्यासी पलायनवादा ही होते हैं। और उन निन्यानवें के कारण सो को यह मानना मुश्किल हो जाता है। निन्यानवें ता इसलिए भागते हैं कि वोमारो है, झगड़ा है, पत्नी मर गई है, दिवाला निकल गया है । कुछ ऐसे कारण हैं जो उन्हें कहते हैं कि इस झंझट से दूर हो जाओ ।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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