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प्रश्नोतर प्रवचन- १४
पिता । यह जो भिक्षापात्र लिए खड़े हैं यहो सज्जन तुम्हें जन्म देकर एक ही -रात बाद भाग गये थे । इन्होंने जगाकर माझे नहीं कहा था कि मैं जाता हूँ । - अपने दाय का भाग माँग लो। यह तुम्हारे पिता हैं ।
भिक्षु यह सुनकर सन्नाटे में आ गये । आनन्द घबड़ाने लगा कि इस पागल को पता नहीं किससे क्या कह रही है ? तब बुद्ध ने आनन्दित होकर राहुल से कहा कि बेटा निश्चित हो मैं तेरा पिता हूँ । हाथ फैला कि जो सम्पत्ति मैंने तेरे लिए इकट्ठों को वह तुझे दे दूँ । बुद्ध का हाथ तो खाली है तो भी राहुल ने हाथ 1. फैला दिया है । बुद्ध ने अपना भिक्षापात्र उसके हाथ में दे दिया और कहा कि तू दोक्षित हुआ। क्योंकि बुद्ध जैसा पिता तुझे ऐसी ही सम्पदा दे सकता है जो तुझे भी बुद्ध बना दे। मैं तो बहुत दिन मटका, अब तुझे क्यों भटकाऊँ ? यशोधरा रोने लगो है । लोग चिल्लाने लगे हैं कि यह क्या पागलपन हो रहा है ? एक बेटा छोड़कर गये थे उसे भो लिए जाते हैं । तो बुद्ध कहते हैं कि और भी जिसको चलता हो, उसको भो मैं ले जाने का तैयार हूँ। क्योंकि जो मैंने वहाँ पाया है, अपने बेटे को कैसे वंचित रखूं उससे ? जिन हारों की खदान है वहां अपने बेटे को कैसे न ले जाऊं ?
हमें लगता है कि दायित्व छोड़कर बुद्ध भाग गये । लेकिन मैं कहता हूँ कि जैसा बुद्ध थे, वैसा ही रहकर क्या दायित्व पूरा कर लेने हैं ? कितने बाप हुए हैं, कितने वेटे हुए हैं, किसने क्या दायित्व पूरा किया है ? एक बाप जो कर सकता था ज्यादा से ज्यादा बेटे के लिए वह बुद्ध ने किया है और जो कुछ जाना था, जो कुछ पाया था उसके सामने खान दिया है। दायित्व को समझना हमें मुश्किल हो जाए। अपने दुःख के लादना हो हम दायित्व समझते हैं । अज्ञान की यात्रा को दायित्व समझते हैं ।
शायद इस
भार को दूसरे पर गति देना ही हम
पलायन वह करता है जो दुःखो हो । भागता वह है जो दुःखो हो, डरता हो, भयभीत हो, जिसे शक हो कि जीत न सकूँगा । ऐसा आदमी हमें भागना दिखता है । घर में आग लगो हो और एक आदमी घर के बाहर निकले उसे आप भागने वाला तो न कहेंगे । कोई यह तो नहीं कहेगा कि घर में आग लगो थी और यह आदमी बाहर निकल आया । कोई नहीं कहेगा कि यह पलायनचादी है क्योंकि वहीं भागने का सवाल हो नहीं है। विवेक की बात है कि कोई बाहर हो जाए ।