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________________ प्रश्नोत्तरापन-१४ कभी समर्पित नहीं हो सकता। समपित हो सकता है सिर्फ परमात्मा के प्रति। और परमात्मा का मतलब है समस्त । अगर परमात्मा भी एक व्यक्ति है तो भी समर्पण नहीं हो सकता। जैसे अगर किसी ने परमात्मा को राम मान लिया है तो राम के प्रति उसका समर्पण है, कृष्ण के प्रति समर्पण नहीं है। एक बड़े रामभक्त सन्त के जीवन में उल्लेख है कि उन्हें कृष्ण के मन्दिर में ले जाया गया। तो बांसुरी बजाते कृष्ण को मूर्ति को उन्होंने नमस्कार करने से इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि मैं तो धनुर्धारी राम के प्रति हो सकता हूँ। और अगर चाहते हो कि मैं झुकू तो इनके हाथ में धनुषबाण दे दो। यानी झुकने वाला शर्त लगाएगा। वह यह भी शर्त लगाएगा कि तुम कैसे खड़े हो ? धनुषबाण लेकर कि बांसुरी लेकर । तुम्हारी कैसी शक्ल हो, तुम्हारी कैसी आंखें हों, वह सब शर्त लगाएगा। और इस तरह समर्पण में शर्त हो सकती है। यानी कोई यह कहे कि तुम ऐसे हो जाबो तो मैं समर्पण करूंगा तो क्या समर्पण रहा? समर्पण का तो अर्थ ही सदा बेश है । मैं मानता हूँ कि महावीर का समर्पण है लेकिन किसी व्यक्ति के प्रति नहीं, समस्त के प्रति । और समस्त के प्रति जिनका समर्पण है उनका हमें पता नहीं चलता। क्योंकि पता कैसे चलेगा? हम तो व्यक्तियों के ही समर्पण को समझ पाते हैं कि यह मादमी फला आदमी के प्रति समर्पित है। लेकिन एक आदमी समस्त के प्रति समर्पित है, उस पत्थर के प्रति भी जो सड़क पर पड़ा है, बाकाश के तारे के प्रति भी, आदमी के प्रति भी, और बच्चे के प्रति भी और जानवर के प्रति भी। नो समस्त के प्रति समर्पित है, उसका समर्पण हमारी पहचान में नहीं जाएगा क्योंकि हमारा मापदण्ड सीमित सौदे का है। अगर मैं एक व्यक्ति को प्रेम करूं तो समझ में आ सकता है कि मैं प्रेम करता है। लेकिन अगर नेरा समरस के प्रति प्रेम हो तो समझ में थाना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि हम प्रेम को पहचान ही तब पाते हैं जब वह व्यक्ति से बंष. गाए । अगर वह फैला हो, असीम हो तो हम नहीं पहचान पाते उसे । इसलिए महावीर को समझने वाले सोचते रहे हैं कि महावीर ने किसी एक के प्रति इसलिए समर्पण नहीं किया कि एक के प्रति समर्पण करने से शेष के प्रति असमर्पण हो जाता है। अगर पूर्ण समर्पण है तो पूर्ण के प्रति, असीमित के प्रति ही हो सकता है। अपूर्ण के प्रति, सीमित के प्रति समर्पण नहीं हो सकता। अब तक किसी ने भी इस तरह नहीं सोचा है महावीर के प्रति कि वह समर्पित व्यक्ति है। मेरा मानना है कि वे बिल्कुल ही पूर्ण समर्पित व्यक्ति है। लेकिन
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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