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________________ -** ४१३ । जब हम क्रोध करते हैं तब एक तरह का जहर, जीर प्रेम करले हैं तो एक तरह का अमृत — इस तरह सारे के सारे रस शरीर में छूटते रहते हैं । यह तो स्थूल शरीर के तल पर हो रहा है लेकिन सूक्ष्म शरीर के तल पर भी यह हो रहा है । जब आप कोध कर रहे है तो सूक्ष्म शरीर के साथ विशेष तरह के परमाणु सम्बन्धित हो रहे हैं । जब आप प्रेम कर रहे हैं तो विशेष प्रकार के परमाणु सम्बन्धित हो रहे हैं । इस शरीर के छूट जाने पर वह सूक्ष्म शरीर ही सूखी रेखाजों की तरह आपके भोगे गए जीवन को लेकर नई यात्रा शुरू करता है और वह सूक्ष्म शरीर हो नए शरीर ग्रहण करता है । वह अन्धा हो सकता है; वह लंगड़ा हो सकता है; बुद्धिमान् हो सकता है । प्रत्येक मृत्यु में स्थूल देह मरती है। फिर अन्तिम मृत्यु है महामृत्यु, जिसे हम मोक्ष कहते हैं। उसमें सूक्ष्म शरीर भी मर जाता है । जिस दिन सूक्ष्म शरीर मर जाता है, उस दिन व्यक्ति का मोक्ष हो गया । स्थूल शरीर तो हर बार मरता है । मगर भीतर का शरीर हर बार नहीं मरता वह तभी मरता है जब उस शरीर के रहने का कोई अर्थ नहीं रह जाता। जब व्यक्ति न कुछ करता है, न भोगता है, न कर्ता बनता है, न किसी कर्म को ऊपर लेता है, न कोई प्रतिक्रिया करता है । जब व्यक्ति केवल साक्षी मात्र रह जस्ता है तब सूक्ष्म शरीर पिघलने लगता है, बिखरने लगता है । साच्ची की जो त्रक्रिया है, वह सूक्ष्म शरीर को ऐसे पिघला देती है जैसे सूरज निकले और बर्फ पिघलने लगे । साक्षी के निकलते ही सूक्ष्म शरीर के परमाणु पिघल कर बहने लगते हैं । और यह पिघलना ऐसा अनुभव होता है जैसे जुकाम पकड़ गया हो। और जुकाम उतर रहा है तो आप अनुभव करते हैं, किसी को बता नहीं सकते कि अब जुकाम नीचे उतर रहा है। सूक्ष्म शरीर का पिघलना साक्षी को इसी तरह पता चलता है कि कोई चीज भीतर पिघल कर बहती चली जा रही है। और जिस दिन सूक्ष्म शरीर पिघल जाता है, आत्मा और शरीर पृथक् दिखाई देते हैं। सूक्ष्म शरीर जोड़ है। वह पुचक नहीं दिखाई पड़ने देता । वह दोनों को जोड़कर रखता है । और जिस दिन वे दोनों पृथक् दिखाई पड़ जाते हैं, वह आदमी कह देता है कि यह बाजिरी यात्रा है। अब इसके बाद लौटना नहीं । रात को सर्दी से बुद्ध को जिस दिन ज्ञान हुआ, बुद्ध ने कहा कि वह घर गिर गया जो सदियों से नहीं गिरा था। तो वे घर के बनाने वाले बिदा हो गए जो सदा उस २८
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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