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________________ ४३२ महावीर | मेरी दृष्टि में 1 जारी रखती है । और श्वास के डूबने के साथ वह देखता है कि मृत्यु उतरने लगी है । और उसने श्वांस की जागरूकता का इतना अभ्यास किया है कि जब श्वांस बिल्कुल नहीं रह जाती तब भी वह जागा रहता है। बस वही कोण है जहाँ से उसकी नई यात्रा शुरू हो गई जागरण की । तब फिर उसका. जन्म एकदम जागरूक जन्म है । तो 'बारदो' में बड़ी चेष्टा करते हैं । मैं चाहता हूँ कि 'बारदो' जैसी स्थिति इस मुल्क में पैदा की जाए, जो कभी नहीं हो सकी । यहाँ मरने के नाम फिजूल मूर्खतापूर्ण बातें प्रचलित हो गई हैं जिनका कोई देना- लेना नहीं है । कोई मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं जगा पाया कि मरते हुए आदमी के लिए हम सहयोगी हो जाएं। सहयोगी हम हो सकते हैं और उसी माध्यम से वह व्यक्ति जब दुबारा जन्म लेगा तो उसके जन्म को पिछली यात्रा उसके सामने रहेगी सदा । वह आदमी दूसरे ढंग का हो जाएगा । उसके दूसरे जन्म में सावना अनिवार्य हो जाएगी । अब वह दूसरा जन्म खोने को तैयार नहीं हो सकता । वह जो सूक्ष्म शरीर है, जिसकी मैंने बात कही, उसी सूक्ष्म शरीर में वे सूखी रेखाएँ बनती हैं जो कल मैंने कहीं। वे कर्म जो हमने किए, वे फल जो हमने भोगे और वह जो हम जिए उस सबकी सूक्ष्म रेखाएं उस सूक्ष्म शरीर पर बनती हैं । इसलिए वह जो सूक्ष्म शरीर है उसका एक नाम महावीर ने रखा कामरण शरीर । महावीर का ख्याल है कि जो भी हमने जिया और भोगा उस भोग के कारण विशेष प्रकार के परमाणु हमारे शरीर से जुड़ जाते हैं । जैसे. एक क्रोधी आदमी है तो वह एक विशेष प्रकार के परमाणु अपने सूक्ष्म शरीर में जोड़ लेता । अब तो साइंस बहुत तरह की बातें कहती है कि जब आप क्रोध में होते हैं तो आपके खून में एक तरह का जहर छूट जाता है । जब आप प्रेम में होते हैं तो आपके खून में एक तरह का अमृत छूट जाता है । जब एक आदमी किसी स्त्री के प्रति और कोई स्त्री किसी पुरुष के प्रति पागल हो जाती ' है प्रेम में तो उसके खून में अमृत के फव्वारे छूट जाते हैं जिनकी वजह से सम्मोहन पैदा हो जाता है और स्त्री सुन्दर दिखाई पड़ने लगती है जितनी वह है नहीं । अगर आपको किसी स्त्री से प्रेम नहीं है तो एल एस डी का इंजेक्शन लगाकर उस स्त्री को देखें जिससे आपको प्रेम नहीं तो आप एकदम दीवाने हो जाएँगे क्योंकि वह इंजेक्शन आपके शरीर में अमृत छोड़ देता है जिससे कोई भी स्त्री आपको अपूर्व सुन्दर दिखाई पड़े । यह सवाल नहीं है कि फलां स्त्री । एक साधारण सी स्त्री भी अद्वितीय दिखाई पड़ेगी । एक साधारण सा फूल सुन्दर और आलौकिक दिखाई पड़ेगा ।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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