________________
प्रबंधन - १३
४३१
"
तिब्बत में एक प्रयोग होता है-बारदो । दुनिया में जिन लोगों ने खोज की है मृत्यु के बाबत उनमें सबसे ज्यादा लोग तिब्बत के हैं । बारदो एक अद्भुत प्रयोग है । आदमी मरता है तो भिक्षु उसके आस-पास खड़े होकर बारदो का प्रयोग करते हैं। जब वह मर रहा होता है तब वे उसे चिल्लाकर कहते हैं कि होश रख, होश रख, संभल, बेहोश मत हो जाना क्योंकि बड़ा मौका आया है जैसा कि मरने का मौका फिर सौ वर्ष के बाद आया हो । वे उसे हिलाते हैं, जगाते हैं । आप हैरान होंगे । अस्पेन्सी नाम का एक अद्भुत विचारक चलते-चलते मरा, लेटा नहीं । अभी मरा दस-पन्द्रह साल पहले । और उसने अपने सारे शिष्यों को इक्ट्ठा कर लिया मरने से पहले । वह चलता ही रहा । उसने कहा कि मैं होश में ही मरूंगा । मैं लेटना भी नहीं चाहता कि कहीं झपकी न लग जाए । चलता ही रहा । जो लोग मौजूद थे उन्होंने लिखा है कि जो अनुभव हमें उस दिन हुआ वह कभी नहीं हुआ कि कोई आदमी इतने होश से मर सकता है । टहलता ही रहा और कहता रहा कि बस अब यह होता है, अब यह होता है । अब मैं यहां डूब रहा है, अब मैं इस जगह पहुँच रहा हूँ, अब सब इतने सैकेंड में स्वांस चली चली जाएगी। वह एक-एक चीज को नाप कर बोलता रहा । और पूरा सचेत मरा मरा तब सचेत खड़ा था । बारदो में उस जादमी को चिल्ला चिल्लाकर सचेत करते हैं कि जागे रहना, सो मत जाना | देखो - ऐसा, ऐसा होगा, घबराओ मत। बेहोश मत हो जाना । और फिर अगर वह आदमी होश में रह जाता है तो "बारदो" की प्रक्रिया आगे चलती है । फिर उसको बताते हैं अब ऐसा होगा, देख गौर से देख भीतर की अब ऐसा होगा, अब ऐसा होगा। अब शरीर से प्राण इस तरह टूटेगा । अब शरीर छूट गया, तू घबराना मत। तू मर नहीं गया है। शरीर छूट गया है लेकिन देख तेरे पास देह है, गौर से देख, घबड़ा मत । वह पूरे प्रयोग करवाएँगे मरते वक्त | और मरने की प्रक्रिया बहुत कीमती है । अगर उस वक्त किसी की सचेत किया जा सके तो उसके जीवन में एक क्रान्ति हो गई जो बहुत अद्भुत है । लेकिन सचेत उसको रखा जा सकता है जो जीवन में सचेत होने का प्रयोग कर रहा हो ।
मैं जिस श्वास के अभ्यास के लिए आपसे कह रहा हूँ अगर वह आप जारी रखें तो मृत्यु के वक्त में कोई सम्पत्ति काम नहीं आएगी, कोई मित्र काम नहीं आएगा, श्वांस की जागरूकता ही सिर्फ काम में आती है। क्योंकि जो श्वास के प्रति जागरूक है उसकी श्वांस जब डूबने लगती है, वह अपनी जागरूकता
•