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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में कैसे स्वप्न उनकी माताएं देखती रही है इसको भी फिक्र की जानी चाहिए । तो शायद हमें यह साफ हो सके कि चित्त की एक विशिष्ट दशा में ऐसी आत्मा प्रविष्ट होती है । इतना तो तथ्य है कि हर दशा में हर आत्मा प्रविष्ट नहीं होती। मां-बाप सिर्फ अवसर बनते हैं आत्मा के उतरने के, अवतरण के। आत्मा एक शरीर को छोड़ती है। जैसे ही मरतो है मूछित हो जाती है । और दूसरे जन्म तक मूच्छित हो रहती है। यानी माँ के पेट के नौ महीनों में भी मूच्छित ही रहती है। लेकिन कुछ आत्माएँ सचेत मरती हैं वे मां के पेट में भी सचेत हो सकती है। जो सचेत मरेगा, वह माँ के पेट में भी सचेत होगा। तो यह कहानियाँ आकस्मिक नहीं है कि मां के पेट में भी कुछ सीखा जा सके और बाहर की बातें सुनी जा सकें, या बाहर के अर्थ ग्रहण किए जा सकें। यह असम्भव नहीं है । अगर कोई आत्मा मरते वक्त पूर्ण चेतन थी, होश नहीं खोया था, शरीर होशपूर्वक छोड़ा था तो वह आत्मा होशपूर्वक शरीर लेगी। लाओत्से के सम्बन्ध में कहा जाता है कि वह बूढ़ा ही पैदा हुआ क्योंकि पैदा होते ही उसने ऐसे लक्षण दिखाए जो कि अत्यन्त वृद्ध ज्ञानी में होने चाहिए। और बचपन से उसमें ऐसी बातें दिखाई पड़ने लगों जो कि बड़े अनुभव के बाद ही हो सकती हैं। सचेतन रूप से मरा हुआ व्यक्ति सचेतन रूप से पैदा हो सकता है। तो मां के पेट में महावीर के संकल्प करने की बात अर्थ रखती है। "मैं अपने माता-पिता को दुःख नहीं दूंगा, उनके जीते संन्यास नहीं लूँगा" इस बात का संकल्प गर्भ में किया गया है। लेकिन सामान्यतः हम मरते समय बेहोश हो जाते हैं और दूसरे जन्म तक यह बेहोशी जारी रहती है। असल में प्रकृति की यह व्यवस्था है मूर्छा करने की। जैसा हम आपरेशन करते हैं एक आदमी का तो हम उसे मूच्छित कर देते हैं ताकि मूर्छा में जो भी हो उसे पता न चल राके । क्योंकि पता चलना बहुत घबराने वाला भी हो सकता है। इसलिए प्रकृति की व्यवस्था है मरने के पहले मूच्छित करने की और दूसरे जन्म तक मुर्छा ही रहती है। और इस मूर्छा में जो भी होगा-जैसा कि मैंने कहा कि मात्मा शरीर ग्रहण करेगी तो वह बिल्कुल स्वाभाविक है। स्वाभाविक का मतलब यह है कि आत्मा रुझान जैसी है अचेतन, वह उस तरफ यात्रा कर जाएगी। सचेतन रूप से जन्म बहुत कम लोग लेते हैं । सचेतन रूप से वही लोग जन्म ले सकते हैं जिन्होंने पिछले जीवन में चेतना की बड़ी गहरी उपलब्धि की है। और तब वे जानते हैं पिछले जन्मों को, मृत्यु को, मरने के बाद को।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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