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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में f यानी अब तक, इस बात की जरूरत ही नहीं पड़ी थी कि हम वीर्य अणु को प्रयोगशाला में ले जाकर बच्चा पैदा करें। लेकिन अब जरूरत पड़ जाएगी इसलिए क्योंकि स्त्री की सम्भावना समाप्त होने के करीब आ गई है । वह एक बच्चे को नौ महीनों में जन्म दे सकती है । वह कितने ही बच्चों को जन्म दे, बीस-पचीस बच्चों से ज्यादा जन्म नहीं दे सकती । अधिकतम जन्म देने वाली स्त्री ने छब्बीस बच्चों को जन्म दिया है । उसकी सम्भावना इससे ज्यादा नहीं है । लेकिन अमर मनुष्य आत्माओं का तीव्र आगमन होने लगे तो फौरन उपाय करने पड़ेगे । वह हमको दिखता नहीं अभी कि आखिर हम यह उपाय किसलिए कर रहे हैं या यह कभी सम्भव हो सकता है । और तब तो एक व्यक्ति के पूरे के पूरे चालीस करोड़ बीजाणुओं का भी गर्भधारण हो सकता है । लेकिन वह होगा तभी जब आत्मा उतरने को आतुर हो । और मेरा मानना है कि यह जो एक करोड़ की सम्भावना है एक सम्भोग में और चालीस करोड़ की सम्भावना है एक व्यक्ति के जीवन में वह इसलिए है कि आज नहीं कल, हजार वर्ष बाद, दस हजार वर्ष बाद इतनी जीव आत्माएँ मुक्त होंगी कि इन सब अणुओं की जरूरत पड़ने वाली है । नहीं तो इसका कोई मतलब नहीं है । और प्रकृति बेमतलब कोई काम नहीं करती। जो भी शरीर में है, उसकी कोई गहरी सार्थकता है, वह हमें पता हो, या न हो । और अगर आज उसकी सार्थकता नहीं तो कल उसकी सार्थकता हो सकती है। एक माँ और एक बाप के व्यक्तित्व से निर्मित जो बीजाणु हैं, वह सम्भावना बनते हैं एक ऐसे व्यक्ति को जन्म देने की जो इन दोनों की सम्भावनाओं से तालमेल खाता हो। इसलिए जो लोग समझ सकते हैं इस विज्ञान को वे यह भी निश्चित करवा सकते है बहुत गहरे में कि कैसे बच्चे उनको पैदा हों । सम्भोग के क्षण में यह उनकी मनोदशा, उनके मनोभाव, उनकी चित्तस्थिति निर्धारित करेगी । 7 ४२८ प्रश्न : ये जो महावीर और बुद्ध के सम्बन्ध में हमें ढेर कहानियाँ प्रचलित मिलती हैं, वह किस अर्थ में सार्थक हैं ? जैसे महावीर के सम्बन्ध में है कि इतने स्वप्न आते हैं या बुद्ध के सम्बन्ध में है कि इतने स्वप्न आते हैं ? उत्तर : स्वप्न आते हैं, या नहीं आते हैं यह महत्त्वपूर्ण नहीं है । महत्व - पूर्ण सिर्फ इतना है कि ऐसे स्वप्न जिस चित्त में आते हों, उस चित्त की एक विशिष्ट अवस्था होगी तो ये स्वप्न आएँगे । सब स्वप्न सबको नहीं आते । चित्त को अवस्था पर स्वप्न निर्भर करते हैं । एक आदमी क्रोधी है तो वह ऐसे स्वप्न देखता है जिनमें क्रोध होगा । एक आदमी कामी है तो वह
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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