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________________ प्रवचन-१३ ४२७ सम्भोग करता है और एक सम्भोग में अन्दाजन एक करोड़ बच्चे के सम्भावना. बीज हैं तो अगर एक पुरुष के सारे अणु प्रयुक्त हो सकें और वास्तविक बन सकें तो एक पुरुष अन्दाजन चालीस करोड़ बच्चों का पिता बन सकता है। स्त्री की यह सम्भावना नहीं है क्योंकि उसका महीने में एक ही बीज परिपक्व होता है। वह महीने में सिर्फ एक व्यक्ति को जन्म दे सकती है। लेकिन एक को भी नहीं दे पाती क्योंकि नौ महीने सिर्फ एक व्यक्ति उसके व्यक्तित्व को रोक लेता है। सभी सम्भोग सार्थक नहीं होते। और इसका कारण है जो कि अभी तक वैज्ञानिक नहीं सोच पाए। स्त्री का बीज मौजूद है। उस पर पुरुष के एक करोड़ बीज एकदम से हमला करते हैं। और ध्यान रहे कि जो बाद में प्रकट होते हैं गुण वह बीज में ही छिपे होते हैं। पुरुष के सारे बोजाणु हमलावर होते हैं, तेजी से हमला करते है। स्त्री का बीज प्रतीक्षा करता है वह हमला नहीं करता। यह जो एक करोड़ वीर्याणु है बहुत तेजी से गति करते हैं। यह जानकर आप हैरान होंगे कि प्रतियोगिता शुरु हो जाती है। वहाँ जो प्रतियोगिता में आगे निकल जाता है, वह जाकर स्त्रीमणु से एक हो जाता है । जो पीछे छूट जाता है, वह हट जाता है, मर जाता है, समाप्त हो जाता है। लेकिन प्रत्येक बार सम्भोग से गर्भ नहीं बनता। उसका वैज्ञानिक कारण नहीं खोज पाए अब तक । और नहीं खोज पायेंगे। उसका कारण यह है कि गर्भ तभी बन सकता है जब वैसी आत्मा प्रवेश करने के लिए आतुर हो। वह हमें दिखाई नहीं पड़ता। दो अणु मिलते हैं, इतना हमें दिखाई पड़ता है। स्त्री और पुरुष के अणुओं का मिलन सिर्फ जन्म नहीं है, यह है सिर्फ अवसर भर जिसमें एक आत्मा उतर सकती है। प्रश्न : लेकिन अब तो सम्भावना है बगैर सम्भोग के हो ? उत्तर : सम्भोग से कोई सम्बन्ध ही नहीं है सम्भावना का। सम्बन्ध तो. सिर्फ दो अणुओं के मिलन का है। वह मिलन सम्भोग के द्वारा हो रहा है, यह प्रकृति कीव्यवस्था है। कल सिरिंज के द्वारा हो सकता है, वह विज्ञान की व्यवस्था होगी। प्रश्न : इसमें से हर एक अणु ही उसमें इस्तेमाल हो सकते हैं ? उत्तर : हाँ, हो सकते हैं और वह तभी हो सकेंगे जब इतनी आत्माएं जन्म मेने के लिए आतुर हो जाएं कि गर्भ व्यर्थ हो जाएं। और इसलिए मैं कह रहा है कि सब जरूरतें अनुकूल तैयार होती है, यह हमारे ख्याल में नहीं आता।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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