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________________ ४२४ महावीर : मेरी दृष्टि में कहीं स्मृति भी होती है। उन लोगों में भी इस स्मृति से प्रवेश हो सकता हैविज्ञान शायद प्रवेश नहीं कर पाएगा। क्योंकि चाँद पर विज्ञान पहुँचा, बड़ी कीमती घटना घटी लेकिन अब अगर मंगल पर पहुँचता है तो एक वर्ष जाने में और एक वर्ष आने में लगेगा और सूर्य के जितने उपग्रह हैं उनमें किसी पर जीवन नहीं है पृथ्वी को छोड़कर। सूर्य के उपग्रह छोड़कर अगर किसी दूसरे उपग्रह पर जाना है तो मनुष्य की उम्र का अंत ही नहीं। अगर दो सौ वर्ष आने-जाने में लगें तो कोई उपाय नहीं। जिस तारे से चार वर्ष लगते हैं प्रकाश आने में तो जिस दिन हम प्रकाश की गति को वाहन बना लेंगे, उस दिन चार वर्ष लगेंगे हमको जाने में, चार वर्ष लगेंगे आने में। लेकिन प्रकाश की गति का वाहन कभी हो सकेगा? क्योंकि कठिनाई यह है कि प्रकाश की गति जिस चीज में भी हो जाय वही प्रकाश हो जाएगा। यानी किरण ही हो जाएगी वह चीज । यानी उतनी गति पर अगर किसी चीज को चलाया तो वह ताप की वजह से किरण हो जाएगी। तो प्रकाश की गति असम्भव मालूम पड़ती है। क्योंकि प्रकाश की गति पर हवाई हजाज चला तो जैसे ही वह उतनी गति पकड़ेगा वह पिघलेगा और प्रकाश हो जाएगा, क्योंकि उतनी गति पर उतना ताप पैदा हो जाता है और उतने ताप पर किरण बन जाती है। प्रकाश की गति पर किसी दिन वाहन ले जाया जा सकेगा, यह असम्भव है। तो विज्ञान हमारे सभी जीवनों से सम्बन्ध बना सकेगा, यह करीब-करीब असम्भव बात है। लेकिन इतना हो सकता है कि विज्ञान की इस सारी खोज-बीन के बाद हमें यह ख्याल में आ सके कि धर्म यह सम्बन्ध बना सकता है। यह जानकर आपको हैरानी होगी कि जैसे ही अन्तरिक्ष की यात्रा शुरू हुई है, रूस और अमेरिका दोनों ही योग में उत्सुक हो गए हैं। अमरीका ने कमीशन बिठाई तीन-चार वैज्ञानिकों का। सारी दुनिया का चक्कर लगाओ और इसकी खबर लाओ कि क्या विचार का सम्प्रेषण बिना माध्यम के हो सकता है, खबरें लाई गई हैं। क्योंकि इस बात का डर है कि अन्तरिक्ष में यात्री जाए, उसका यंत्र बिगड़ जाए और वह कोई खबर न दे सके। वह अन्तहीन में खो जाएगा। उसका हमें दुबारा कभी पता भी नहीं लगेगा कि वह कहाँ गया ? एक तो व्यवस्था होनी चाहिए कि अगर यंत्र भी खो जाएं तो वह सोषा विचार के सम्प्रेषण से खबर दे सके। अगर विचार का सम्प्रेषण सीधा हो सके तमी यह सम्भावना है कि हम दूसरे लोगों के जीवन से सम्बन्ध स्थापित कर सकें। क्योंकि तब विचार की गति का सवाल ही नहीं। विचार में समय लगता हो नहीं।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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