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महावीर : मेरी दृष्टि में
जहाँ है वहीं पुनरुक्त हो सकता है या आगे जा सकता है। दो ही उपाय हैं : या तो आप आगे जाएं या जहाँ है वहीं भटकते रह जाएं। और जहाँ हैं अगर आप वहीं भटकते रहते हैं तो विकास अवरुद्ध हो जाएगा और अगर आप आगे जाते हैं तो विकास फलित होगा ।
विकास चेष्टा पर निर्भर है, संकल्प पर निर्भर है, साधना पर निर्भर है। इसीलिए इतने बड़े प्राणी जगत् में मनुष्यों की संख्या बहुत कम है । बढ़ती भी है तो बहुत वीरे-धीरे बढ़ती है। आज हमें लगता है कि बहुत जोर से बढ़ रही है तो वह भी हम सिर्फ मनुष्य को सोचते हैं, इसलिए ऐसा लगता है । अगर हम प्राणीजगत् को देखें तो मनुष्य से ज्यादा छोटी संख्या का कोई प्राणी नहीं है जगत् में। एक घर में इतने मच्छर हो सकते हैं जितनी पूरी मनुष्य जाति । और करोड़ों योनियां है। एक-एक योनि में कितने असंख्य व्यक्ति हैं। इतने थोड़े हैं लोग । जैसे कोई एक मन्दिर बनाए और बड़ी भारी नींव भरे, फिर उठते-उठते, आखिर मीनार पर एक छोटी सी कलगी उठी रह जाए। ऐसा बड़ा भवन है जीवन का, उससे मनुष्य की कलगी बड़ी छोटी-सी ऊपर उठी रह गई है। अगर हम सारे प्राणीजगत् को देखें तो हमारी कोई संख्या हो नहीं है। हम एक बड़े समुद्र में एक छोटी बूंद से ज्यादा नहीं है । लेकिन अगर हम मनुष्य को देखें तो हमें बहुत ज्यादा मालूम पड़ता है कि साढ़े तीन अरब भादमी हैं और हमें चिन्ता हो गई है कि हम कैसे बचाएंगे इतने आदमियों को, कैसे खाना जुटाएंगे, कैसे मकान बनाएंगे, कैसे क्या करेंगे? लेकिन यह कोई बड़ी संख्या नहीं है । और ध्यान रहे, मेरी अपनी यह समझ है कि जब जरूरत . पैदा होती हैं तब नए उपाय तत्काल विकसित हो जाते हैं जैसे आने वाले पचास वर्षों में होने वाला है। बादमी के जन्म को; जीवन को रोकने की सभी चेष्टाओं से कुल इतना ही हो सकता है कि जितनी तीव्रता से गति हो रही है, वह शायद न हो। लेकिन इन आने वाले पचास वर्षों में भोजन के नए रूप विकसित हो जाएंगे। जैसे कि हम समुद्र के पानी से भोजन निकाल सकेंगे; हवा और सूरज की किरणों से सीषा भोजन लिया जा सकेगा। आने वाले पचास वर्षों में भोजन के नए रूप विकसित होंगे जो कभी नहीं थे पृथ्वी पर ।
दूसरी बात जो मैं समझता हूँ बहुत कीमत की है। जैसे बड़ी चेष्टा चली चांद पर जाने की, मंगल पर जाने की। यह चेष्टा पृथ्वी पर संख्या के अधिक बढ़ जाने, का आन्तरिक परिणाम है। ऊपर से दिखाई पड़ता है कि रूस और अमेरिका में दौड़ लगी हुई है चांद पर जाने की। लेकिन बहुत