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________________ ४१६ बेटे को अमोरी जन्म से उपलब्ध हुई है। उसे लगता है कि यह तो है हो । उसे कभी ख्याल भी नहीं होता कि कितने श्रम से वह अमीरो खड़ी की गई है । प्रवचन- १३ 1 फोर्ड एक दफा इंग्लैंड आया। स्टेशन से उतर कर उसने इंक्वायरी आफिस में जाकर पूछा कि लन्दन में सबसे सस्ता होटल कौन-सा है। संयोग से इंक्वायरी वाला आदमी फोर्ड को पहचानता था। उसने कहा : " आप सस्ता होटल पूछते हैं । आप फोर्ड ही हैं !” उसने कहा, "हां, मैं फोर्ड ही हूँ | सस्ता हाल कौन सा हं सबसे ज्यादा ?" उसने कहा : "मुझे हैरानी में डालते हैं आप | आपका बेटा आता है तो वह पूछता है कि सबसे मंहगा होटल कौन सा है ?” फोर्ड ने कहा : "वह फोर्ड का बेटा है । मैं फोर्ड हूँ। मैं गरीब आदमी था, श्रम करके पैसा कमा पाया हूँ। यह अमोर आदमी पैदा हुआ है, श्रम करके गरीब होने की कोशिश करेगा। मैं गरीब आदमी था। मैं सचेत हूँ पूरी तरह कि कैसे कमा पाया हूँ। वह अमीर का बेटा है । हैनरी फोर्ड का बेटा है । उसको ठहरना हो चाहिए मंहगो जगह । लेकिन मैं ठहरा हैनरी फोर्ड ।" यह हैनरी फोर्ड एक पुराना कोट पहने रहता था वर्षों से । वह कभी बदलता ही नहीं था उसको । कोट फट गया तो सिलवा लेता, ठोक करवा लेता । किसी मित्र ने कहा कि आपको यह कोट शोभा नहीं देता । तो हॅनरी फोर्ड ने कहा कि लोग मुझे ठीक-ठीक पहचानते हैं कि मैं हैनरी फोर्ड हूँ। मैं चाहे कोई भी कोट पहन लूँ इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । यह तो मेरे बच्चे के लिए है कि वे शानदार कोट पहनें ताकि लोग पहचान सकें कि हैनरी फोर्ड के लड़के हैं । तो हम एक जन्म में जो कमाते हैं दूसरे जन्म में वह हमारी सहज उपलब्धि होती है । यानी दूसरे जन्म में वह हमें सम्पत्ति की तरह मिलनी है और पिछला जन्म हमें भूल जाता है जैसे कि बेटे को बाप का श्रम भूल जाता है । पिछले जन्म में जो हमने कमाया है उसे हम इस जन्म में भूल जाते हैं और हम उसे अक्सर गंवाना शुरू करते हैं। धन के बाबत ही नहीं, के पुण्य बावत, ज्ञान के बाबत चेतना के बाबत भी यही होता है । अवसर का उपयोग और बढ़े इसके लिए हम आगे और कुछ भी नहीं कर पाते । जो हो गया है वहीं हम भटक जाते हैं । इसलिए लोग एक ही योनि में बार-बार पुनरुक्त हो सकते हैं | लाख बार भी पुनरुक्त हो सकते हैं । नीचे कोई नहीं जाता । नीचे जाने का कोई उपाय नहीं है। पोछे कोई लीट नहीं सकता । लेकिन
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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