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________________ प्रवचन-१३ यहो सरलतम रास्ता है दूसरा रास्ता कठिन है बहुत । भौर वह यह है कि हम दस बीस पशओं के निकट रहें और उनसे आन्तरिक सम्बन्ध स्थापित करें। हमें पता चलेगा कि उनमें भी अच्छे, बुरे हैं। वे जो दस कुत्ते हमें दिखाई पड़ रहे हैं, वे सब एक जैसे कुत्ते नहीं हैं । उनका अपना-अपना व्यक्तित्व है। ___ स्विटजरलैंड के एक स्टेशन पर एक कुत्ते का स्मारक बना हुआ है। वह दुनिया में अकेला स्मारक है कुत्ते के लिए । सन् १९३० या १९३२ की घटना है। एक आदमी के पास एक कुत्ता है। हर रोज जब वह आदमी दफ्तर जाता है सुबह दस बजे की ट्रेन पकड़कर तो वह कुत्ता उसे स्टेशन छोड़ने जाता है। जब ट्रेन छूटती है तब वह कुत्ता खड़ा हुआ उसे बिदा देता रहता है । ठीक पांच बजे जब वह लौटता है तो कुत्ता स्टेशन पर खड़ा रहता है जहां उसका मालिक उतरता है। ऐसा हर रोज चलता है। ऐसा कभी नहीं हुआ कि वह सुबह छोड़ने न आया हो। ऐसा भी कभी नहीं हुआ कि वह ठीक पांच बजे शाम अपने मालिक को लेने न आया हो। लेकिन एक दिन ऐसा हुआ कि मालिक गया और नहीं लौटा । एक दुर्घटना हुई शहर में और मालिक मर गया। पांच बजे कुत्ता लेने आया। गाड़ी खड़ी हो गई लेकिन मालिक नहीं उतरा। तो फिर उसने एक-एक डिब्बे में जाकर झांका, चिल्लाया, पुकारा। लेकिन मालिक नहीं है। फिर स्टेशन के लोगों ने उसे भगाने की कोशिश की लेकिन किसी भी हालत में वह भागा नहीं और जो भी ट्रेन आती उस पर मालिक को खोजता ऐसे पन्द्रह दिन उसने पानी नहीं पिया, खाना नहीं खाया और वह भी उसी जगह खड़ा हुमा मर गया जहां उसका मालिक उसे रोज पांच बजे की ट्रेन से आकर मिलता था। सब तरह के उपाय किए गए कि वह एक टुकड़ा रोटी का खा ले लेकिन उसने इन्कार कर दिया। स्विटजरलैंड के अखबारों में सब तरफ चर्चा हो गई। उस कुत्ते के बड़े-बड़े फोटो छपे । लेकिन उस कुत्ते ने हटने से इन्कार कर दिया। उसको वहां से भगाओ, वह फिर पांच-दस मिनट बाद वहाँ । हाजिर । उसने स्टेशन का पीछा नहीं छोड़ा और जब तक जिन्दा रहा, हर गाड़ी पर चिल्लाता रहा, रोता रहा। उसकी आंख से आंसू टपकते। वह एकएक डिब्बे में झांकता। कमजोर हो गया। चल नहीं सकता। वह अपनी जगह पर बैठा है और रो रहा है । आखिर वहीं वह मर गया है, जहाँ मालिक को उसे मिलना था। अब ऐसा कुत्ता कोई साधारण कुत्ता नहीं। इसके व्यक्तित्व में कुछ ऐसा है जो कि मनुष्य तक में कम होता है। यह गति कर जाएगा। इसकी गति निश्चित है। यह उस जगह से ऊपर उठने वाला है। इसकी २७
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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