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________________ १४१६ महावीर : मेरी दृष्टि में पशु होने में उसने कुछ किया जिससे वह मनुष्य बना तो उसे ख्याल में हो सकता है कि मनुष्य होने में कुछ करे तो वह और ऊपर जा सकता है । ___महावीर एक व्यकि को समझा रहे थे। रात है। महावीर का संघ ठहरा है। हजारों साधु, संन्यासी ठहरे हुए हैं। एक बड़ी धर्मशाला में निवास है। एक राजकुमार भी दीक्षित है। पुराने साधुओं को ज्यादा ठीक जगह मिल गयी। मगर राजकुमार वह जो बीच का रास्ता है धर्मशाला का, उस पर सोया हुआ है। रात भर उसे बड़ी तकलीफ हुई है, बड़ा कष्ट हुआ है। यह ऐसा अपमान ! वह राजकुमार था, कभी जीवन पर चला नहीं था, आज गलियारे में सोया है । वृद्ध साधुओं को कमरे मिल गए हैं। वह गलियारे में पड़ा हुआ है। रात भर कोई गलियारे से निकलता है, तो उसको नींद टूट जाती है । वह बारबार सोचने लगा कि बेहतर है मैं लौट जाऊँ । जो था वही ठीक था। यह क्या पागलपन में मैं पड़ गया है। ऐसा गलियारों में पड़े-पड़े तो मौत हो जाएगी। यह मैंने क्या भूल कर दी। सुबह महावीर ने उसे बुलाया और कहा : तुझे पता है कि पिछले जन्म में तू कौन था? उसने जवाब दिया कि मुझे कुछ पता नहीं । तो महावीर उससे उसके पिछले जन्म की कथा कहते हैं : पिछले जन्म में तू हाथी था । जंगल में आग लगी। सारे पशु, सारे पक्षी भागे । तू भी भागा । जब तू पैर उठा रहा था और सोच रहा था कि किधर को जाऊं तभी तने देखा कि एक छोटा-सा खरगोश तेरे पैर के नीचे आकर बैठ गया है। उसने समझा कि पैर छाया है, बचाव हो जाएगा और तू इतना हिम्मतवर था कि तूने नीचे देखा कि खरगोश है तो तूने फिर पैर नीचे नहीं रखा । तू फिर पैर ऊँचा हो किए खड़ा रहा । आग लग गई, तू मर गया लेकिन तूने खरगोश को बचाने को मरते दम तक चेष्टा की। उस कृत्य की वजह से तू आदमी हमा है। उस कृत्य ने तुझे मनुष्य होने का अधिकार दिया है। और आज तू इतना कमजोर है कि रात भर गलियारे में सो नहीं सका और भागने की सोचने लगा। तो उसे याद आती है अपने पिछले जन्म की और पता चलता है कि ऐसा था। तब सब बदल जाता है। भागने की, पलायन की, छोड़ने की, भयभीत होने की सारी बात खत्म हो जाती है। अब वह दृढ़-संकल्प पर खड़ा हो जाता है। अब एक नई भूमि उसे मिल जाती है।। एक रास्ता यह है कि हम व्यक्तियों को उनके पिछले जन्मों में ले जाएँ। उससे पता चलेगा कि वे किस योनि से कैसे विकसित हुए, कौन-सी घटना थी जिसने उन्हें मूलतः हकदार बनाया कि वे ऊपर को जिन्दगी में चले जाएं।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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