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________________ ४१५ हम कहते हैं कि विकास शायद निन्याववें प्रतिशत स्वचालित है । एक आघ प्रतिशत विकास स्वेच्छा से होता है । लेकिन जैसे-जैसे हम ऊपर की तरफ आते हैं विकास सचेष्ट मालूम होता है । प्रवचन- १३ मनुष्य के साथ यह मामला है कि उसके साथ जो विकास होगा वह निन्यानवें प्रतिशत स्वेच्छा से होगा, नहीं तो विकास होगा ही नहीं । और इस लिए मनुष्य कोई पचास हजार वर्षों से ठहर गया है। अब उसमें कोई विकास लक्षित नहीं होता । दस लाख वर्ष के भी जो शरीर मिले हैं उनमें भी कोई विकास हुआ नहीं दिखता। उसमें और हमारे अस्थिपंजर में कोई बुनियादी फर्क नहीं पड़ा है, न हमारे मस्तिष्क में कोई बुनियादी फर्क पड़ा है। ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्य में निन्यानवें प्रतिशत स्वेच्छा पर निर्भर करेगा । कोई बुद्ध, कोई महावीर - यह स्वेच्छा का विकास है और अगर हम स्वचालित विकास से प्रतीक्षा करते रहे तो एक ही प्रतिशत विकास की सम्भावना है जो बहुत ही धीरे-धीरे घिसटती रहेगी । जितने पीछे हम जाते हैं, उतनो स्वेच्छा कम हैं, यांत्रिकता ज्यादा है | मनुष्य तक आते हैं तो स्वेच्छा ज्यादा हैं, यांत्रिकता कम है । लेकिन निम्नतम योनि में भी एक अंश स्वेच्छा का है जो कि उसे चेतन बनाता है। नहीं तो चेतन होने का कोई अर्थ नहीं। यानी चेतन होने का अर्थ यही है कि विकास में हम भागीदार हैं और पतन में हम जिम्मेदार हैं । चेतना का मतलब यही है कि हमारा दायित्व है, हमारी जिम्मेदारी है। जो भी हो रहा है उसमें, हम जो हो सकते हैं उसमें अन्ततः हम जिम्मेदार हैं । सारा विकास चाहे पशु, पक्षी, मछली, कीड़े-मकोड़े, पौधा - कोई भी विकसित हो रहा हो उसकी इच्छा सक्रिय होकर काम कर रही है। पहचानना मुश्किल है । हम कैसे पहचानें कि पशु पक्षी मानव योनियों में प्रवेश कर रहे हैं । कई रास्ते हो सकते हैं लेकिन सरलतम रास्ता एक ही है : और वह यह कि जो मनुष्य चेतनाएं आज हैं अगर हम उन्हें उनके पिछले जन्मों में उतार सकें तो हम पा जाएँगे पता इस बात का कि वे पिछले जन्मों में पशुओं और पौधों से भी होकर आई हैं । जातीय-स्मरण के गहरे प्रयोग महावीर ने किए हैं । प्रत्येक व्यक्ति जो उनके निकट आता वह उसे जातीय-स्मरण के प्रयोग में ले जाते ताकि वह जान सके कि उसकी पिछली यात्रा क्या है। यहाँ तक भी वह जान सके कि वह पशु कब था, कैसा पशु था, और पशु होने कर्म किया कि वह मनुष्य हो सका । और अगर यह उसे पता में उसने कौन सा चल जाए कि
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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