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________________ ४१३ किया है वह अगर ऐसे किसी आनन्द का है जिससे मैं वंचित रहूँ तो उन्हें दुःख होगा तो मैं शादी कर लूँगा । फिर मुझसे पूछना ही मत और अगर कहीं तुम्हारा ऐसा अनुभव हो कि तुमने दुःख पाया तो तुम्हारा पहला काम होगा मुझे सचेत कर देना ताकि कहीं मैं भूल चूक से भी शादी न कर लूँ । -१३ I पन्द्रह दिन बाद जब माँ ने मुझे कहा कि मुश्किल में डाल दिया है । क्योंकि खोजने गई हूँ तो कैसा आनन्द ? अब मैं नहीं कह सकती है कि तुम शादी करो । वैसे तुम्हारी मर्जी । मैंने कहा अब जब मेरी मर्जी होगी मैं तुमसे कहूँगा । यानी तब तक के लिए बात स्थगित हो गई और वह मर्जी नहीं हुई । न मैंने कभी नहीं कहा है, न कभी हाँ कहा है । यहाँ भी कोई समझाने-बुझाने वाला आ जाए तो मैं राजी हो सकता हूँ । इसमें कोई तकलीफ की बात नहीं है, इसमें कोई अड़चन नहीं है । मेरे पिता के एक मित्र थे। बड़े वकील थे बड़े तार्किक 1 शादी बहुत उपयोगी थे । दूसरे गाँव में रहते थे। पिता ने उनको कहा कि आप आकर समझाएँ । वे आए, रात आकर रुके । आते ही उन्होंने मुझसे कहा कि चाहे कितने भी दिन मुझे रुकना पड़े मैं यह सिद्ध करके जाने वाला हूँ कि है । मैंने कहा कि इसमें देर की जरूरत ही नहीं आज ही आप मुझे समझा दें, आज ही मैं राजी हो जाऊँ । लेकिन ध्यान रहे यह एक तरफ नहीं रहेगा मामला ।' उन्होंने कहा : क्या मतलब ? मैंने कहा बाप समझाएँगे तो मुझे भी कुछ बोलने का हक होगा। और अगर सिद्ध कर दिया कि शादी करना आनन्दपूर्ण है तो मैं कल सुबह हाँ भर दूँगा । और अगर सिद्ध हो गया कि आनन्दपूर्ण नहीं है तो आपका क्या इरादा है ? क्या आप शादी छोड़ने को राजी हैं ? क्योंकि अकेला एकतरफा मामला ठीक नहीं है । यह अन्याय हो जाएगा । यानी मैं दाव लगाऊँ जिन्दगी और आप बिना दाव के लड़ें तो फिर मजा नहीं आएगा । उन्होंने कहा कि तुम ठहर जाओ। मैं सुबह तुमसे बात करूंगा। मेरे उठने के पहले वह जा ही चुके थे । पिता से कह गए थे कि मैं इस झंझट में नहीं पड़ता । इस झंझट से मुझे कोई जरूरत नहीं । संदिग्ध हमारा मन है भीतर तो हम किसी को क्या समझाएँगे ? फिर बहुत वर्ष बाद जब वे मुझे मिले तो उन्होंने कहा : 'तुमने मुझे बहुत चिन्ता में डाल दिया । मैं रात भर सो नहीं सका। फिर मैंने कहा कि यह ज्यादती होगी • क्योंकि मैं खुद ही छोड़ने की हालत में बैठा हूँ। मैंने कहा इस बात में मुझे पड़ना ही नहीं है । ओर में हार जाता क्योंकि मैं भीतर से ही कमजोर था । यानी मैं खुद ही इस पक्ष का हूँ कि बहुत गल्ती हो गई लेकिन अब कोई उपाय
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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