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________________ ४१२ महावीर : मेरी दृष्टि में सारी कठिनाई हो जाती है, सारी असुविधा हो जाती है। तो इसकी बात भी तनिक कर लेनी चाहिए। जैसा मैंने कहा कि महावीर को कोई फर्क नहीं पड़ता शादी हो या न हो। एक सीमा पर सब बराबर हैं और जहां सब बराबर हैं, वहीं मुक्ति है। और जहाँ तक भेद है वहाँ तक मुक्ति नहीं है। जहां तक शर्त है कि ऐसा होगा तो ठीक, और ऐसा न होगा तो गलत हो जाएगा वहाँ तक हम बंधे हुए हैं । यह चुनाव ही बांषता है। मैं कहता हूँ : बस ऐसा, तो शांत रहूँगा, आनन्दित रहूँगा। ऐसा न हुआ तो फिर अशांत हो जाऊंगा। शांति और अशांति, आनन्द और निरानन्द बंधे हुए हैं कहीं। मैं मुक्त नहीं हूँ। ऐसा नहीं है कि मैं हर हालत में आनन्दित रहूँ। जो आदमी हर हालत में आनन्दित है उसको कोई शर्त नहीं है । उसको तो यह भी शर्त नहीं कि बीमार रहे कि स्वस्थ, जिन्दा रहे कि मर जाए, शादी हो कि न हो, मकान हो कि न हो। उसे कोई शर्त नहीं । वह बेशर्त जीता है, जो भी हो जीता है। ___ मैं अपना ही उदाहरण देता हूँ। शादी के लिए मैंने कभी मना किया ही नहीं। क्योंकि मना भी वही करता है जिसके मन में कहीं 'हो' छिपा हो। 'हाँ' छिपा हो तभी 'न' सार्थक होती है। और कई बार तो 'न' का मतलब ही 'हाँ' होता है, यानी 'न' सिर्फ ऊपर की होती है, 'हाँ', पीछे होती है। मैं विश्वविद्यालय से लौटा तो घर के लोग चिन्तित थे। शादी की बड़ी चिन्ता थी। मुझसे पहली रात मेरी मां ने पूछा कि शादी के सम्बन्ध में क्या ख्याल है । मैंने उससे कहा कि दो-तीन बातें समझने जैसी है। पहली तो यह कि मैंने अब तक शादी नहीं की इसलिए मुझे कोई अनुभव नहीं। तो मेरे 'हां' और 'न' दोनों गैर अनुभवी के होंगे। दूसरा यह कि तुमने शादी को है। तुम्हारा जिन्दगी का अनुभव है। तुम पन्द्रह दिन सोच लो और फिर मुझे कहना कि तुमने शादी करने के बाद कोई ऐसा आनन्द पाया जिससे तुम्हारा बेटा वंचित न रह जाए तो मैं शादी कर लंगा। और अगर तुम्हें लगा कि शादी करके तुमने कोई आनन्द नहीं पाया और तुम्हें शादी के बाद कई बार ऐसा ख्याल आया कि नहीं की होती तो अच्छा था तो मुझे सचेत कर देना कि कहीं मैं कर न बैलूं। मेरी ओर से न 'न' है, न 'ही' है। मेरी मोर से कोई शर्त ही नहीं है । मैंने बात सीधी सामने रख दी क्योंकि मेरा कोई अनुभव ही नहीं है। अभी मैंने शादी नहीं की है, कर सकता हूँ। ऐसी कोई कठिनाई नहीं है। लेकिन जो मुझे प्रेम करते हैं उनको इतना तो मेरे लिए सोचना ही चाहिए कि उन्होंने जो अनुभव
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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