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________________ ४११ उत्तर : हाँ बिल्कुल साथ आएगी। पश्न : एक कमरा है, मच्छर हैं, चीटियां है, मक्खियां हैं तो एक मन माता है पिलट लगा दो। एक मन आता है पिलट न लगाओ । इसमें मन की स्थिति बड़ी डांवाडोल हो जाती है । तो उसमें क्या उचित है ? उत्तर : उचित वही है जो आप कर सकोगे और करोगे। उचित मानकर आप चले तो मुश्किल में पड़ जाओगे। अगर मैंने कह दिया कि फ्लिट लगाना उचित नहीं है तो रात भर मुझको गाली दोगे क्योंकि मच्छर काटेंगे। या मैंने कह दिया कि पिलट लगाना उचित है तो आप समझेंगे कि हिंसा मैंने की। फल उसका मैं भोगूंगा। यह उचित, अनुचित का सवाल नहीं है । आप सोचो और जिओ । जो ठीक लगे, करो। संकल्प जग सकता है मगर तभी जब चित्त की धारणाएं चली जाएं। संकल्प जग जाए तो फिर इनके प्रयोग का कोई मतलब नहीं क्योंकि जब धारणाएं छूटे तभी संकल्प जगता है। यानी कठिनाई कुछ ऐसी है जैसा बैंक के सम्बन्ध में कहा जाता है। बैंक उस आदमी को पैसे उधार देता है जिसको पैसे की कोई जरूरत नहीं। और जिस आदमी को जरूरत है उसे बैंक पैसा उधार नहीं देता क्योंकि जिसे जरूरत है उससे लौटने की सम्भावना नहीं। बैंक पक्का पता लगा लेता है कि इस आदमी को पैसे की जरूरत नहीं है। फिर बैंक जितना चाहे उतना उधार देता है। और पक्का पता लग जाए कि इस आदमी को पैसे की जरूरत है तो बैंक हाथ खींच लेता है, पैसे नहीं देता है। यह बड़ा उल्टा है नियम । होना तो ऐसा चाहिए था कि जिसे पैसे की नरूरत हो उसे बैंक पैसा दे लेकिन बैंक उसको पैसा नहीं देता। बैंक सिर्फ उसी को पैसा देता है जिसको कोई जरूरत नहीं है। तो मेरा कहना है कि परमात्मा को विराट् शक्ति उन्हीं को उपलब्ध होती है जिन्हें कोई जरूरत नहीं। और जिन्हें जरूरत है उन्हें उपलब्ध नहीं होती। मीसस का कहना है कि जो अपने को बचाएगा वह नष्ट हो जाएगा और जो अपने को खोने के लिए राजी है उसे कोई भी नष्ट नहीं कर सकता । जो मांगेगा उससे छीन लिया जाएगा और जो छोड़कर भागने लगेगा उसे दे दिया नाएगा। असल में मांगने वाला चित्त संकल्प ही नहीं कर सकता। उसका कारण है क्योंकि मांगने वाला चित्त दोन और दरित होता है कि संकल्प जैसी सम्पदा उसके पास नहीं हो सकती। असल में न मांगने वाला संकल्प कर सकता है। लेकिन हम संकल्प भी इसीलिए करते हैं कि कुछ मांग लेंगे। तब
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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