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महावीर । मेरी दृष्टि में
कर्म के संस्कार की पूरी व्यवस्था का हिस्सा होता है। वह न करने का तुम्हारा सवाल भी व्यर्थ है।
प्रश्न : कोशिश करने का भी कारण होता है ?
उत्तर : हां, कारण है । कारण यही है कि तुम दुःख को नहीं झेल सकते, नहीं देख सकते और उसको बदलने की कोशिश करते हो। तो हम जब यह सोचने लगते हैं कि न करें तब हम गलतो में पड़ जाते हैं। न करने के लिए कारण जुटाना बहुत मुश्किल है। और नहीं तो न करने का जिस दिन कारण जुटा लोगे उस दिन सामायिक हो जाएगी और मोक्ष हो जाएगा। यानी मेरा मतलब समझे आप ? करने का कारण ही हमने जुटाया है सब । जिस दिन हम उस हालत में आ जाएंगे कि हम कह सकें कि न करना भी काफी है, अब कुछ नहीं करते तो नियम के हम बाहर हो जाएँगे। उस स्थिति का नाम ही मोका हैलो करने के बाहर हो गया। लेकिन जो करने के भीतर है, वह कुछ न कुछ करता ही रहेगा।
दूसरी बात यह भी समझ लेनी चाहिए। एक आदमी, हो सकता है कि चांटा मारने में दुःख न उठाए, आनन्दित हो। हम को लगेगा कि फिर उसके साथ क्या होगा? लेकिन हमें ख्याल नहीं है कि जो आदमी चांटा मारने में आनन्दित है वह आदमी नहीं रह गया है। वह आदमो से बहुत नीचे उतर गया है । और उसने चांटा मारने में इतना खोया जितना कि चांटा मार कर दुःखी होने वाला नहीं खोता है। इस बात को जरा ख्याल में रखें। जो चांटा मार कर दुःखी होता है, वह बहुत थोड़ा फल भोगता है लेकिन जो चांटा मार कर मानन्दित होता है उसने तो भारी फल भोग लिया। उसका तो विकास तल एकदम नीचे चला गया। वह तो एकदम जंगली हो गया। उसने दस हजार, बीस हजार, पचीस हजार साल में जो विकास किया, सब खो दिया। उसका विकास तो इतना पिछड़ गया कि उसको जन्म-जन्मान्तरों का चक्कर हो गया जिसमें कि वह वापस उस जगह आए जहां कि चांटा मारने से दुःख होता है। मेरा मतलब समझे आप ? फल वह भो भोग रहा है। बहुत भारी फल भोग रहा है । उसका फल बहुत गहरा है, बहुत गहरा है।
प्रश्न : मापने जो कहा कि जीवनप्रस्त कर्म को जो सूखी रेखा मंकित होती है, उससे पुनर्जन्म का सिद्धान्त फलित होता है। मापने कहा कि एक भावमी हत्या करता है वस-बारह जन्मों तक तो उसके हत्यारा होने की सम्भावना बनी रहती है। पहले मापने कहा था कि जो पहले जन्म में वेश्या