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________________ ३९४ महावीर । मेरी दृष्टि में प्रश्न : सूखी रेखा का सिद्धान्त क्या है ? उत्तर : सिद्धान्त की जरूरत नहीं । तथ्य है यह। जैसे समझ लो कि आज दिन भर मैंने क्रोध किया, दुःख भोगा, गाली खाई, झगड़ा हुना, उपद्रव हुआ, अशान्त हुआ। फिर मैं सो गया आज रात को। आपने दिन भर क्रोध नहीं किया, प्रेम से लोगों से मिले जुले, आनन्दित रहे । आप भी सो गए । सुबह हम दोनों एक ही कमरे में सोकर उठे। मेरी चप्पल मेरे बिस्तर के पास नहीं मिली मुझे । आपको भी नहीं मिली। आपको सम्भावना बहुत कम है कि आप क्रोध में आ जाएँ। मेरो सम्भावना बहुत ज्यादा है कि मैं क्रोध में आ जाऊँ । वह जो कल का दिन था उसकी सूखी रेखा मेरे साथ है। कल दिन भर जो क्रोध किया तो आज सुबह से ही उपद्रव शुरू हो गया। कहाँ है मेरी चप्पल ? कल जो मैंने गाली दी थी, वह भी गई, जो गाली का दुःख था, वह भी गया। लेकिन गाली देने वाला आदमी जिसने दिन भर गालियां दी वह तो शेष है। मुझमें और आप में कोई फर्क तो होना चाहिए क्योंकि आपने गाली नहीं दी और मैंने दिन भर गाली दी। और सुबह फिर ऐसा हो जाए कि कोई भेद न रह जाए तब तो फिर व्यवस्था गई । भेद तो रहेगा ही मुझ में और आप में । क्योंकि हम अलग ढंग से जिए। मैं क्रोध में जिया, आप प्रेम में जिए। तो हम में भेद रहेगा। वह भेद वृत्ति का होगा, फल का नहीं। फल तो गया। अब हमारे साथ रह जाएगा वह जो समग्र संस्कार है हमारा। इस समग्र संस्कार के प्रति हमारी मूर्छा कारण होगी इसको चलाने का। जैसे समझ लें कि कल मैंने क्रोध किया दिन भर और सुबह सोचूँ कि बहुत क्रोध किया, बहुत दुःख पाया और जाग जाऊं तो जरूरी नहीं कि मैं फिर क्रोध करूँ यानी मेरे भीतर क्रोष करने की अनिवार्यता नहीं है। सिर्फ मुर्छा में ही अनिवार्यता है। अगर मैं सोए-सोए कल जैसा व्यवहार करूँ तो क्रोव चलेगा। अगर जाग जाऊँ तो क्रोध 'टूट जाएगा। ___इसलिए अन्ततः मेरी दृष्टि में कर्म की निर्जरा तो हो चुकी है लेकिन कर्म को सूखी रेखा रह गई है। और वह सूखी रेखा हमारी मूर्छा है । अगर हम मूच्छित रहें तो हम वैसे ही काम करेंगे। अगर हम जाग जाएं तो काम इसी वक्त बन्द हो जाए । इसलिए मैं कहता हूँ कि एक क्षण में मुक्ति हो सकती है। करोड़ जन्मों में आपने क्या किया है, इससे मुझे कुछ लेना-देना नहीं है । सिर्फ आप जाग जाएँ। इससे ज्यादा कोई शर्त नहीं। यह मेरी व्यक्तिगत दृष्टि है क्योंकि मैं ऐसी व्याख्या कर रहा हूँ । बुनियादी अन्तर पड़ेगा आपकी व्याख्या से।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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