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________________ प्रश्नोत्तर-वचन-१२ होती है दूसरे जन्म में उसकी वृशि वमन की होती है। कर्मों की सूखी रेखा से तो उसे वेश्या ही होना चाहिए। उत्तर : ठीक कहते हैं । साधारणतः तुम समझते हो कि दमन कर्म नहीं है। असल में दमन कर्म है, भोग भो कर्म है, वेश्या होना भी एक कर्म है । प्रश्न : और वमन भी कर्म है ? उत्तर : हां दमन भी कर्म है। दमन की भी सूखी रेखा रह जाती है। संन्यासी है एक, साध्वी है एक । हजारों सूखो रेखाएं हैं। हजारों हमारे कर्म है, हजारों रेखाओं का जाल है। उस सब पाल की निष्पत्ति हम हैं। एक वेश्या, प्रतिदिन जब भी वह वेश्या के काम से गुजरती है, दुःखी होती है । सामने उसके एक संन्यासिनी रहती है और वेश्या दिन-रात सोचती है कि कैसा अद्भुत जोवन है उसका । कैसा अच्छा होता कि मैं संन्यासिनी हो जाती। तो दोहरी रेखाएँ पड़ रही है। वह वेश्या होने का कर्म कर रही है, यह उसकी एक रेखा है लेकिन उससे भी प्रबल एक रेखा है कि वह वेश्या होने से पीड़ित है और वह संन्यासिनी होना चाहती है। सामने जो संन्यासिनी रह रही है वह सुबह से सांझ तक ब्रह्मचर्य साध रही है। लेकिन जब भी वेश्या के घर में दिया जलता है,.सुगंधि निकलती है और संगीत बजने लगता है तब उसका मन डांवाडोल हो जाता है। और वह सोचती है कि पता नहीं वेश्या कैसा आनन्द लूट रही होगी । तो साध्वी भी दो रेखाएं बना रही है । एक रेखा बना रही है वह साध्वी होने की और दूसरी रेखा बना रही है वह वेश्या होने के आकर्षण की। भव इन सबके तालमेल पर निर्भर करेगा अन्ततः कि साध्वो वेश्या हो जाए या वेश्या साध्वी हो जाए। मेरा मतलब है कि जिन्दगी में हजार-हजार रेखाएं काम कर रही हैं। साधो रेखा नहीं है कोई, सोषा रास्ता नहीं है कोई । हजार-पगडंडियों कट रही हैं । और वे बहुकारणात्मक है। और तुम खुद कभी थोड़ी देर गिर जाते हो, फिर थोड़ी देर उठ जाते हो। तुम कोई सोधी रेखा में नहीं चले जा रहे हो। कभी तुम अच्छे आदमोहोने को रेखा में दो कदम चलते हो, दस कदम बुरे आदमी के होने में हट आते हो। तुम्हारी जिन्दगी भी कोई ऐसी नहीं है कि तुम एक रास्ते पर सोधे चले जा रहे हो। तुम बार-बार चौराहे पर लोट आते हो। पीछे जाते हो, आगे जाते हो, बाएं-दाएं जाते हो। सब ओर तुम घूम रहे हो। इस सबका समूचा हिसाब होगा। तुम्हारे चित्त पर इस सब के संस्कार होंगे।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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