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________________ प्रश्नोत्तर - प्रवचन- १२ ३८७ है कि यह कितना आकस्मिक है कि दो लाख आदमी एक साथ मर गए क्योंकि इन दो लाख व्यक्तियों के भीतर हमारा कोई प्रवेश नहीं । और ऊपर से ऐसा दिखता है कि बिल्कुल आकस्मिक है कि एटम गिरा। लेकिन कोई पूछे कि हिरोशिमा पर क्यों गिरा ? हिरोशिमा कोई महत्त्वपूर्ण नगर न था । टोकियो पर गिर सकता था । नागासाकी पर क्यों गिरा ? जब तक हम पूरा भीतर प्रवेश न कर पाएं कारणों के, जब तक हम हिरोशिमा के लोगों के भीतर न घुस सकें तब तक हम कुछ नहीं कह सकते । कोई नहीं कह सकता कि हिरोशिमा में जापान में सबसे ज्यादा आत्मघातेच्सुक लोग हों कि इसलिए हिरोशिमा एटम को आकर्षित करता हो । एक मोटर एक्सीडेंट हो जाए, एक एयरोप्लेन एक्सीडेंट हो जाए तो कोई नहीं कह सकता कि उस मोटर में, उस हवाई जहाज में बैठे हुए लोगों के चित्त में क्या चल रहा है और वह किस भांति परिणाम ला सकता है । मेहरबाबा की जिन्दगी में दो-तीन घटनाएँ बड़ी । अद्भुत हैं। एक मकान उनके लिए बनाया गया। उस मकान में वह प्रवेश करने गए। प्रवेश का उत्सव मनाया जा रहा है, फूल-झाड़ लगाए गए है, दिए लगाए गए हैं। दरवाजे पर वह दो मिनट रुके और वापस लौट आए उन्होंने कहा : इस मकान में मैं नहीं जाऊँगा । लोगों ने कहा : क्या मतलब है आपका इस मकान में न जाने से । उन्होंने कहा: और मुझे कुछ नहीं लगता लेकिन दरवाजे पर मैं एकदम ठिठका इसलिए मैं मकान में नहीं जाता। वह मकान उसी को भी साफ नहीं है कि क्या हुआ लेकिन सीढ़ी मालूम हुई और उसने इन्कार कर दिया । रात गिर गया । इस आदमी पर उसको एकदम झिझक यही मेहरबाबा एक बार हिन्दुस्तान से यूरोप जाते हैं हवाई जहाज से । और अदन में जहाज पर चढ़ने से इन्कार कर देते हैं। तक की । अदन पर जहाज रुका है । वह एयरपोर्ट पर बाद वह एकदम इन्कार कर देते हैं कि जहाज गिर जाता है । उनकी टिकट है आगे उतरे हैं और उसके मैं जहाज पर नहीं चढ़ सकता और वह जापान में एक घटना घटी। पिछले महासुद्ध में एक अमेरिकी जनरल जा रहा है एक हवाई जहाज से, किसी सैनिक कार्य से, किसी दूसरे सैनिक कैम्प में । वह घर से निकल गया है सुबह आठ बजे । उसकी टाइपिस्ट भागी हुई उसके घर पहुँची है कोई सवा आठ बजे और उसकी पत्नी से कहा है कि जनरल कहाँ हैं ? उसकी पत्नी ने कहा : क्यों ? उसने कहा : रात मैंने एक सपना देखा है । .
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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