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________________ ३८६ महावीर : मेरी दृष्टि में भी आना बड़ी मुश्किल से हुआ है। एक छोटी सी भेंट लाया हूँ-अंगीकार करेंगे, इन्कार तो न करेंगे । गुरु ने सहज कहा : नहीं, नहीं, इन्कार कैसे करूंगा? पर देखा कि उसके पास कुछ है तो नहीं। हाथ खाली है, कपड़े फटे है । कहाँ की भेंट है, कैसी भेंट है ? कहा : नहीं, नहीं, इन्कार कैसे कर दूंगा ? तुम जो दोगे, जरूर ले लूंगा। भिखारी ने मांख बन्द को और ऊपर जोर से कहा : 'भगवान्, मेरी शेष आयु मेरे गुरु को दे दो क्योंकि मैं जीकर भी क्या करूंगा?' यह कहते ही वह आदमी मर गया। यह ऐतिहासिक घटना है। अगर इतना प्रबल संकल्प किसी आदमी का है तो वह पूरा हो सकता है। यह बहुत कठिन बात नहीं है। और वह गुरु पन्द्रह वर्ष और जिया जिसकी एक ही साल में मर जाने की आशा थी। ऐसा व्यक्ति अगर लाटरी पर नम्बर लगाये और लाटरी निकल आए तो इसे संयोग कहा जाएगा क्योंकि हमें कारण तो दिखाई पड़ते नहीं । वही तो हम कहता है कि सब संयोग है। क्योंकि कारण कहां दिखाई पड़ रहे हैं ? जिसमें हमें दिखाई पड़ जाते हैं उस में तो हम राजी हो जाते हैं । जिसमें दिखाई नहीं पड़ते, संयोग मालूम पड़ता है। लेकिन संयोग बड़ा अद्भुत है । एक मादमी कहे कि मेरी उम्र चली जाए और उसी वक्त उसकी उम्र चली जाए। इतना एकदम आसान नहीं है संयोग। हो सकता है लेकिन यह होना एकदम आसान नहीं मालूम पड़ता। इतने संकल्प का आदमी अगर लाटरी का नम्बर लमा दे तो बहुत कठिन नहीं है कि निकल आए । बहुत से कारण हैं जो हमें विखाई नहीं पड़ते हैं। और हमको लगता है कि यह आकस्मिक हुआ है मगर आकस्मिक कुछ भी नहीं है। प्रश्न : किसी एक को लाटरी मिलनी है, इसलिए उसको मिल गई है। क्या ऐसा नहीं कहा जा सकता ? उत्तर : अब यह जो मामला है इसकी भी भविष्यवाणी की जा सकतो है । ऐसे लोग भी हैं जो बता सकें कि लाटरी किसको मिलेगी, तब क्या कहोगे ? तब समझना बहुत मुश्किल हो जाएगा। हिटलर की मृत्यु को बताने वाले लोग हैं कि किस दिन हो जाएगी। गांधी की मृत्यु को बताने वाले लोग हैं कि किस दिन हो जाएगी। चीन किस दिन हमला करेगा भारत पर, इसको बताने वाले लोग भी हैं। एक अर्थ में हम कह सकते हैं कि यह सब संयोग है। . प्रश्न : लेकिन हिरोशिमा में दो लाल व्यक्ति एक साथ कैसे मर गए ? उत्तर : हाँ, मरे। दो लाख व्यक्ति भी एक साथ मर सकते हैं क्योंकि हमें ऐसा लगता है कि किसी न किसी दिन सारी पृथ्वी एक साथ मरेगी। हमें लगता
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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