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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१२ ३८५ वह भी आकस्मिक नहीं है कि किसी आदमी को भीतरी संकल्प मिल गया है। भीतरी संकल्प भी उसके हजारों उन अनुभवों और कारणों का पल होता है जिनसे वह गुजरा है । समझ लीजिए कि एक आदमी है और उसने तय किया है कि मैं बारह घंटे तक आँख नहीं खोलूंगा और वह आदमी बैठ गया है और बारह घंटे में उसने तीन ही घंटे बाद आंख खोल दी है तो इस आदमी का भावी संकल्प क्षीण हो जाएगा। इस आदमी के संकल्प की शक्ति क्षीण हो जाएगी। अगर वह बारह घंटे तक आँख बंद किए बैठा ही रहा, कोई उपाय नहीं किए गए कि वह आंख खोले बारह घंटे में तो यह आदमी एक कर्म कर रहा है जिसका फल होगा, उसका भीतर संकल्प मजबूत हो जाएगा। जीवन बहुत जटिल है। उसमें कोई बात कैसे घटित हो रही है यह कहना एकदम मुश्किल है लेकिन इतना कहना निश्चित है कि जो घटना हो रही है उसके पीछे कारण होगा, चाहे वह ज्ञात हो, चाहे अज्ञात हो । दक्षिण में एक बूढ़े संगीतज्ञ का जन्म दिन मनाया जा रहा है। उसके हजारों शिष्य हैं। वे सब भेंट चढ़ाते हैं क्योंकि हो सकता है कि अगले वर्ष वह जिए भी नहीं। उसके हजारों भक्त है, प्रेमी हैं, वे सब भेटें चढ़ाने आए हैं। रात दो बजे तक भेंट चढ़ती रहीं। लाखों रुपयों की भेंट चढ़ गई है। राजा है, रानियां हैं। जिन्होंने उससे सीखा है, वे सब भेंटें देने आए हैं । आखिर में दो बजे एक भिखारी जैसा आदमी तम्बूरा लिए हुए द्वार पर आया है। सिपाही ने कहा है कि तुम कहाँ जाते हो ? उसने कहा है कि मैं भी कुछ भेंट कर जाऊँ। उसने कहा कि तुम्हारे पास तो कुछ दिखाई नहीं पड़ता। तो उस भिखारी ने कहा कि जरूरी नहीं कि जो दिखाई पड़े, वही भेंट किया जाए । जो नहीं दिखाई पड़ता है, वह भी भेंट किया जा सकता है। तम्बूरा भी उसने सिपाही के पास रख दिया और भीतर गया। भीतर जाकर उसने गुरु के पर पर सिर रखा। उस भिखारी की उम्र मुश्किल से तीस-बत्तीस वर्ष है। बूढ़ा गुरु उसे पहचान भी नहीं सका। उसने कहा : तुसने कब मुझसे सीखा मुझे याद नहीं पड़ता। भिखारी ने कहा कि मैंने कभी आपसे नहीं सीखा। मैं एक भिखारी का लड़का है। लेकिन महल के भीतर आप गाते-बजाते थे; मैं बाहर बैठकर सुनना पानौर वहीं मैं भी कुछ सीखता रहा। लेकिन अब आज धन्यवाद देने तो भाना ही चाहिए। सीसा तो आपसे ही है। द्वार को सीढ़ी के बाहर बैठ कर ही सोखा; कभी भीतर नहीं आ सका क्योंकि भीतर आने का कोई उपाय नहीं था। भाज २५
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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