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________________ ३८४ महावीर : मेरी दृष्टि - जाती है तो यह बिल्कुल अकस्मात् बात है क्योंकि इसमें तो हम कोई कारण खोज नहीं सकते हैं । लेकिन एक लाख आदमियों ने अगर लाटरियों के टिकट भरे है और एक आदमी को मिल गई है तो किसी दिन अगर वैज्ञानिक क्षमता हमारी बढ़े और एक लाख लोगों के चित्तों का विश्लेषण हो सके तो मैं आपको कहता हूँ कि कारण मिल जाएगा आदमी को लाटरी मिलने का । और हो सकता है कि एक लाख लोगों में सबसे ज्यादा संकल्प का आदमी यही है, सबसे ज्यादा सुनिश्चित इसी ने मान लिया है कि लाटरी मुझे मिलने वाली है । एक उदाहरण दे रहा हूँ। और हजार कारण हो सकते हैं । इन लाख लोगों में सबसे संकल्पवान् आदमी जो है, इच्छा-शक्ति का आदमी जो है, उसको मिलने की सम्भावना ज्यादा है, क्योंकि उसके पास एक कारण है जो दूसरों के पास नहीं है । अभी इस पर बहुत प्रयोग चलते हैं। अगर हम एक मशीन से ताश के पत्ते फेंके या मशीन से हम पांसे फेंके तो मशीन में कोई इच्छाशक्ति नहीं होती है। मशीन पांसें फेंक देती है । अगर सौ बार पांसे फेंकती है तो समझ लीजिए दो बार बारह का अंक आता है। तो यह अनुपात हुथा मशीन के द्वारा फेंकने का | मशीन की कोई इच्छाशक्ति नहीं है। मशीन सिर्फ फेंक देती है पांसे हिला देती है और फेंक देती है। सौ बार फेंकने में दो बार बारह का अंक आता है। अब एक दूसरा आदमी है जो हाथ से पांसे फेंकता है और हर बार भावना करके फेंकता है कि बारह का अंक आए। वह सौ में बीस बार बारह का अंक ले आता है। आँख बंद है उसकी । वह देख नहीं सकता कि पांसा कैसा है, क्या है ? और बीस बार ले आता है । एक तीसरा आदमी है जो कितने ही उपाय करता है कि बारह का आकड़ा आ जाए लेकिन सौ में दो बार भी नहीं ला पाता । यानी दो बार जो कि मशीन भी ले आती, जो कि बिल्कुल ही गणना का सवाल है । यह जो बोस बार लाता है, इस आदमी से • हम दुबारा प्रयोग करवाते हैं कि तू इस बार पक्का कर कि बारह का आंकड़ा नहीं आने देना । वह पांसा फेंकता है, बीस बार नहीं आता । समझे, पाँच बार आता है, तीन बार आता है, दो बार आता है । अब सवाल होगा यह कि भीतर की इच्छाशक्ति काम करती है । इस पर हजारों प्रयोग किए गए हैं और यह निर्णीत हो गया है कि भीतर का संकल्प पांसे तक को प्रभावित करता है, ताश के पतों तक को प्रभावित करता है, घटनाओं को बांधता है, प्रभावित करता है, और हजारों आदमीयों के अनुभवों और कारणों का परिणाम होता है ।.
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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