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प्रश्नोत्तर - प्रवचन- १२
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जो होना चाहते हैं उसके लिए भी हम कोई कारण खोज लेते । और इसके पीछे भी एक बुनियादी बात है और वह यह है कि बिना कारण के कोई मी चीज कैसे होगी ? यह बुनियादी सिद्धान्त हमारे भीतर काम कर रहा हैं | अगर चारों आदमी बच गए और जरा भी चोट नहीं पहुँची तो इसका कोई कारण होना चाहिए । अगर ठीक से समझें इतनी दूर तक तो वैज्ञानिक है यह मामला । क्योंकि अकारण यह भी नहीं हो सकता लेकिन कारण क्या होगा ? हम कुछ भी कल्पित कर लेते हैं कि गाड़ी में एक अच्छा आदमी था इसलिए बच गए। और अगर मान लो न बचते तो भी हम कोई कारण खोज लेते कि एक बुरा आदमी वहाँ था इसलिए मर गए । इसमें एक ही बात पता चलती है वह यह कि आदमी अकारण किसी बात को मानने के लिए राजी नहीं है । और यह बात ठीक है । लेकिन हमसे वह जो कारण बताता है वह कारण ठीक हो यह जरूरी नहीं । कारणों की वैज्ञानिक परिक्षा होनी चाहिए। जैसे कि मुझे बैठाल कर दो चार बार गाड़ी गिरानी चाहिए। और अगर मेरे साथ दो चार दफे गिरने से जो भी गिरे, वे सब बच जाएँ तो फिर जरा पक्का होगा । और अगर न बचे तो बात खत्म हो गई। मेरा मतलब यह है कि वैज्ञानिक परीक्षण के बिना कोई उपाय नहीं है । और एक बात ठीक है कि अकारण कोई आदमी किसी बात को मानने के लिए राजी नहीं है और होना भी नहीं चाहिए । लेकिन दूसरी बात ठीक नहीं है । तब हमें कोई कल्पित कारण नहीं मान लेना चाहिए । उतना फिर हमें ध्यान में रखना चाहिए कि कारण को भी हम फिर स्थापित करने के लिए प्रयोग करें। क्योंकि अगर कारण सही है तो वह निरपवाद सही हो जाएगा। दो चार दस बार मुझे गिरा कर देखेंगे तो उससे पता चलेगा कि सबको चोट लगती है या नहीं लगती । और मजे की बात यह है कि चोट अंगर लगी तो थोड़ी सी सिर्फ मुझको ही लगी थी उसमें, बाकी किसी को बिल्कुल नहीं लगी थी। थोड़ा सा जो भी लगा था, वह मेरे पैर में ही लगा था। बाकी तो किसी को भी नहीं लगा था । अगर बुरा आदमी कोई था भी उसमें तो मैं ही था । बाकी जो हम कल्पित आरोपण करते हैं उनका कोई मूल्य नहीं है । लेकिन अकस्मात् कुछ भी नहीं होता है। क्योंकि अकस्मात् अगर हम मान लें तो कार्य कारण का सिद्धान्त गया, एकदम गया। एक बात भी अगर इस जगत् में अकस्मात् होती है तो सारा सिद्धान्त गया । फिर कोई सवाल नहीं है उसके बचने का ।
अकस्मात् कुछ होता ही नहीं क्योंकि होने के पीछे कारण के बीना उपाय नहीं है । कारण होगा ही । अब जैसे एक आदमी है। उसको लाटरी मिल