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________________ ३८२ महावीर । मेरी दृष्टि में गई नीचे और रेत में उल्टी हो गई। चारों पहिए ऊपर हो गए। मेरे एक दूसरे मित्र मणिक बाबू ने पूना में रात को सपना देखा कि मेरे हाथ में बहुत चोट आ गई है । तो फिर वे मुझे लेने आए। पुंगलिया की लड़की को जो ख्याल हुमा था कि मैं उनकी गाड़ी में नहीं आऊँगा सही हो गया । हमारी गाड़ी उलट गई और मणिक बाबू की गाड़ी में हमें आना पड़ा। लेकिन यह घटना एकदम अकस्मात नहीं है। मोर अगर इस बात का थोड़ा विज्ञान समझ में आ जाए तो कारण भी समझ में आ सकेंगे। जैसे कि सोवियत रूस के कुछ हिस्सों में बाकू के इलाके में हजारों साल से बड़ा मेला लगता था। यहाँ एक देवी का मन्दिर है और वर्ष के एक खास दिन में उसमें अपने-आप ज्वाला प्रज्वलित होती है। कोई आग लगानी नहीं पड़ती. ईषन डालना नहीं पड़ता। पर जब ज्वाला प्रज्ज्वलित होती है तो आठ दिन तक जलती है और आठ दस दिन वहाँ मेला भरता है। करोड़ों लोग इकट्ठे होते हैं । यह एक बड़ी चमत्कारपूर्ण घटना थी और कोई कारण समझ में नहीं आता था, क्योंकि न कोई इंधन है, न कोई दूसरी वजह है। फिर कम्यूनिस्ट वहाँ आए। उन्होंने मन्दिर उखाड़ दिया, मेला बन्द कर दिया और खुदाई करवाई । वहाँ तेल के गहरे झरने निकले, मिट्टी के तेल के। लेकिन सवाल यह था कि खास दिन पर वर्ष में क्यों आग लगती है। तेल के झरने से गैस बनती है। गैस जल भी सकती है घर्षण से । लेकिन वह कभी भी जल सकती है। तब खोज-बीन से पता चला कि पृथ्वी जब एक खास कोण पर होती है तभी वह गैस घर्षण कर पाती है। इसलिए खास दिन आग जल जाती है। जब बात साफ हो गई. तो मेला बन्द हो गया। अग्नि देवता बिदा हो गए। अब वहां कोई नहीं जाता। अब भी वहां जलती है आग | अब भी खास दिन पर जब पृथ्वी एक खास कोण पर होती है तो वह गैस जो इकट्ठी हो जाती है वर्ष भर में, फूट पड़ती है । तब तक वह अकस्मात् था। अब वह अकस्मात् नहीं है। अब हमें कारण का पता चल गया है। प्रश्न : यह जो गाडी उलट गई पाप सब बच गए उसमें, तो सबका कहना है कि आप उसमें थे इसलिए बच गए। उत्तर : नहीं। असल में होता यह है कि हम सब बचना चाहते हैं और बचने के लिए बच जाएं तो भी कोई कारण खोज लेंगे। न बच जाएं तो भी कोई कारण खोज लेंगे। कारण हम स्थापित कर लें यह एक बात है और कारण की खोज बिल्कुल दूसरी बात है। यानी एक तो यह होता है कि हम
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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