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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१२ ३८१ में तो भी हम अपने मन में जांच-पड़ताल जारी रखते हैं कि कोई मौका मिल जाए तो इसको छोटा सिद्ध कर दें। तो आदमी दूसरे का देखता है अशुभ और सुख; वह अपना देखता है शुभ और दुःख । उपद्रव हो गया तो वह कर्मवाद के सिद्धान्त में ही घुस गया । मेरी मान्यता यह है कि अगर वह सुख भोग रहा है तो वह कुछ ऐसा जरूर कर रहा है जो सुख का कारण है क्योंकि बिना कारण के कुछ भी नहीं हो सकता । अगर एक डाकू सुखी है तो उसमें कोई कारण है उसके सुखी होने का। और अगर एक साधु सुखी नहीं है तो उसमें कोई कारण है दुःखी होने का। अब अगर दस डाकू साथ होंगे तो उनमें इतना भाईचारा होगा जितना दस साधुओं में कभी सुना ही नहीं गया। लेकिन दस डाकुओं में मित्रता है तो वे मित्रता के सुख भोगेंगे। साधु कैसे भोगेगा उस सुख को ? डाकू कभी एक दूसरे से झूठ नहीं बोलेंगे लेकिन साधु एक दूसरे से बिल्कुल झूठ बोलते रहेंगे । सच बोलने का जो सुख है वह साधु नहीं भोग सकता। प्रश्न : अकस्मात् जो घटनाएं हो जाती हैं, उसको क्या वजह है ? उत्तर : कोई घटना अकस्मात नहीं होती। असल में उस घटना को हम अकस्मात् कहते हैं जिसका हम कारण नहीं खोज पाते । ऐसी घटनाएं होती है जिसका कारण हमारी समझ में नहीं आता। लेकिन कोई घटना अकस्मात् नहीं होती। पश्नः लाटरी कैसे निकलती है ? । उत्तर : अकस्मात् नहीं हैं वह भी। सिर्फ हमें दिखता है कि वह अकस्मात् है। मैं एक घटना बताऊँ। मेरे एक मित्र पुगलिया जी ने चार-पांच वर्ष पहले एक गाड़ी ली और वे मुझे लेने नासिक आए। लेकिन उनकी लड़की ने कहा कि मुझे ऐसा लगता है कि वे आपकी गाड़ी में आएंगे नहीं। पर इस बात का कोई मतलब न था। शायद उसने सोचा होगा कि मैं किसी दूसरी गाड़ी में आ जाऊं या कुछ हो जाए। बात खत्म हो गई। वे मुझे लेने नासिक आए। सुबह बारह बजे के करीब हम निकले वहाँ से । नया ड्राइवर था। वह इतनी तेजी से भगा रहा था कि मुझे मन में लगा कि यह कहीं भी गाड़ी उलटेगी। लेकिन ऐसी कोई बात नहीं थी। रास्ते में हम एक बंगाली डाक्टर की गाड़ी को पार किए। उस गाड़ी में जो महिला बैठी थी उसको भी लगा कि यह गाड़ी कहीं गिरेगी। एक दो मिनट बाद ही जाकर दुर्घटना हो गयी । वह गाड़ी उतर
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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