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________________ प्रश्नोत्तरप्रवचन-१२ ३७५ बदलो। वह ढंग अशान्ति देने वाला है वह कारण है तुम्हारी अशान्ति का। उसको तो तुम देखना नहीं चाहते। वह आदमी कहता है कि वह मशान्ति का डंग तो जन्म-जन्मान्तरों का है। मैंने कहा कि तब जन्म-जन्मान्तर में कोशिश करनी पड़ेगी शान्ति के लिए। फिर यह इतना जल्दी होने वाला भी नहीं । पर मैं तुमसे कहता हूँ कि हो सकता है क्योंकि यह जन्म-जन्मान्तर की बात नहीं, तुम अभी कर रहे हो अशान्ति के लिए सब उपाय । ___ मैंने कहा कि तुम दो-तीन दिन रुक जाओ कृपा करके । तुम अपनी मशांति की चर्चा करो मुझसे । क्या अशान्ति है ? कैसे पैदा हो रही है ? क्या पैदा हो रहा है ? तीन दिन वह आदमी रुका था। चूंकि मैं शान्ति को कोई तरकीब बता हो नहीं रहा था, उसको अपनी अशान्ति की ही बात करनी पड़ी। धीरे-धीरे उसकी बात खुली। वह लखपति आदमी है, बड़ा ठेकेदार है । एक ही लड़का है उसका और उस लड़के ने, जिस लड़की से बाप नहीं चाहता था कि उसकी शादी हो, शादी कर ली। तो दरवाजे पर बन्दूक लेकर खड़ा हो गया जब वे दोनों आए। और कहा कि सिर्फ लाश अन्दर जा सकती है तुम्हारी, वापिस लौट जाओ। अब मुझसे तुम्हारा कोई सम्बन्ध नहीं है। मैंने उससे पूछा : उस लड़की में कोई खराबी है। उसने कहा कि नहीं, लड़की में कोई खराबी नहीं है। लड़की तो एकदम ठीक है। मैंने कहा कि उस लड़की और लड़के के संबंध में कोई पाप है, उसने कहा : वह भी नहीं है। मैंने कहा : मामला क्या है ? बापकी नाराजगी क्या है ? सिर्फ इतनी ही कि आपके अहंकार को तृप्ति न मिली, लड़के ने आपकी आज्ञा नहीं मानी। और अहंकार अशान्ति लाता है । अब उस लड़के को बाहर निकाल दिया है। बड़े आदमी का लड़का था। पढ़ा-लिखा भी नहीं था ठीक से । वह दिल्ली में नब्बे रुपए महीने की नौकरी कर रहा है । अब बाप तड़प रहा है। यह कभी अरविन्द आश्रम जा रहा है, कभी इधर जा रहा है, कभी उधर जा रहा है। मैंने कहा कि तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं। लड़के से जाकर क्षमा मांगो। तुम्हारा अहंकार तुम्हें दुःख दे रहा है । और अहंकार दुख देता है। और तुम्हारा अहंकार से किया गया कृत्य अशान्ति ला रहा है। मैंने कहा कि तुम अपने दिल की बात कहो कि तुम्हारा मन लड़के को वापस लाने का है या नहीं। उसने कहा : बिल्कुल है। वही मेरा एक लड़का है । अब मैं कितना पछता रहा हूँ। हम बुड्ढे-बुड्ढी हैं दोनों, मरने के करीब हैं । यह सब उसका है और जब हमें पता चलता है कि वह नम्बे रुपए महीने की नौकरी कर रहा है दिल्ली में तो हमारी नींद उचट जाती है। अब यह भी
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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