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________________ ३७६ महावीर : मेरी दृष्टि में लगता है कि उस लड़की का भी क्या कसूर है ? मैंने कहा कि इसमें तो कोई बात नही। तुम जब बन्दूक लेकर खड़े हो सकते थे तो जाकर क्षमा भी मांग सकते हो। तुम प्रेम का निमंत्रण करोगे। तुम्हारा लड़का है। तुमने बीच में बाधा डाली है इसलिए तुम दुःख भोग रहे हो। मैंने कहा कि तुम अब सीधे चले जाओ दिल्ली और उस लड़के से क्षमा मांग लो। बात उसकी समझ में आ गई । वह आदमी दिल्ली गया। उसने क्षमा मांगी। पन्द्रह दिन बाद उसका पत्र माया कि मैं हैरान है। आपने ठीक कहा था। वह लड़का और बह घर आ गए हैं और मैं इतना आनन्दित हूँ जितना मैं कभी भी नहीं था। इतना शान्त हूँ जितना मैं कभी नहीं था। अब हमारी कठिनाई यह है कि हम जो कर रहे हैं, वह अशांति ला रहा है। कुछ बदलाहट लाई जा सकती है इसी वक्त । अगर कभी कुछ किया था वह अशांति ला रहा है तब तो बदलाहट का काई उपाय नहीं। और यह जो पैदा करना पड़ा सिद्धान्त जिन्दगी की विषमता को समझाने के लिए उसका कारण दूसरा है। जैसे मेरी अपनी समझ में एक बुरा आदमी सफल होता है, सुखी होता है तो बुरा आदमी एक बहुत बड़ी जटिल घटना है। हो सकता है वह झूठ बोलता है, बेईमानी करता है लेकिन उसमें कुछ और गुरण हैं जो हमें दिखाई नहीं पड़ते। वह साहसी हो सकता है, पहल करने वाला हो सकता है, बुद्धिमान् हो सकता है, एक-एक कदम को समझ कर उठाने वाला हो सकता है। बेईमान हो सकता है, चोर हो सकता है। बुरा आदमी बढ़ी घटना है। उसके एक पहलू को हो कि वह बेईमान है, देख कर आपने निर्णय करना चाहा, तो आप गलती में पड़ जाएंगे। और एक अच्छा आदमी भी एक बड़ी घटना है। हो सकता है कि अच्छा आदमी चोरी भी न करता हो बेईमानी भी न करता हो लेकिन वह बहुत भयभीत आदमी हो । शायद इसलिए चोरी और बेईमानी न करता हो कि उसमें बिल्कुल साहस की कमी हो, जोखिम उठा न पाता हो, बुद्धिमान् न हो, बुद्धिहिन हो क्योंकि अच्छा होने के लिए कोई बुद्धिमान् होना जरूरी नहीं। बल्कि अक्सर ऐसा होता है कि बुद्धिमान् आदमी का अच्छा होना मुश्किल हो जाता है। बुद्धिहीन आदमी अच्छा होने के लिए मजबूर होता है। कोई बचने का उपाय नहीं होता क्योंकि बुद्धिहीनता बुरे होने में फौरन फंसा देती है। लेकिन हम इन सब बातों को नहीं तोलेंगे। हम तो कहेंगे : आदमी अच्छा है, मन्दिर जाता है, उसको सफलता मिलनी चाहिए। मेरी मान्यता है कि सफलता मिलती है साहस से । अगर बुरा मादमी
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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