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________________ ३५८ महावीर : मेरी दृष्टि में तक खबर पहुंचाने वाले जो स्नायु तन्तु हैं, वे हिलते हैं। अंगूग सिर में तो है नहीं। अंगूठा तो छः फुट दूर है। दर्द अंगूठे में होता है, सिर में पता चलता है । पता लाने के लिए जो तन्तु हैं, वे हिलते हैं बीच में। उन तन्तुओं के खास ढंग से हिलने से दर्द पता चलता है। अंगूठा तो कट गया, वे तन्तु उसी खास ढंग से हिले जा रहे हैं। वे तन्तु जो आगे के हैं उसी तरह से काप रहे हैं जिस तरह दर्द में कांपना चाहिए। दर्द का पता चल रहा है और अंगूठे में पता चल रहा है जो है ही नहीं। क्योंकि वह अंगूठे के दर्द की खबर लाने वाला तन्तु है। इसके बाद तो फिर बड़ी काम की चीजें हाथ लगीं। फिर तो यह पता चला कि आपके कान के पीछे जो तन्तु हैं उनमें खास तरह की चोट करके आपके भीतर खास तरह की ध्वनियां पैदा की जा सकती हैं। जैसे मैंने कहा : राम! तो आपके कान के भीतर का तन्तु एक खास ढंग से हिला । कोई राम बाहर न कहे मगर सिर्फ उस तन्तु को आपके कान के पीछे इस तरह से हिला दे जैसे राम बोलते वक्त हिलता है तो आपके भीतर राम सुनाई पड़ेगा । जैसे आपकी आँख है, उससे रोशनी भीतर जाती है । तन्तु एक तरह से हिलते हैं। आपकी आंख बंद कर दी जाए और सिर के भीतर इलेक्ट्रोड डालकर आँख के तन्तु इस प्रकार हिला दिए जाएँ जैसा कि वे प्रकाश के बक हिलते है, आपको भीतर प्रकाश दिखाई पड़ेगा और आप अंधेरे में यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि भूत, प्रेत, देवताओं के लिए दो उपाय है जिससे वे वाणी पैदा कर सकें। एक उपाय यह है कि वे किसी मनुष्य के शरीर का उपयोग करें जैसा कि आमतौर पर वे करते हैं। तब वे बोल सकते हैं। क्योंकि वे आपके कंठ का, आपके बोलने के यंत्र का उपयोग कर लेते हैं । दूसरा उपाय यह है कि आपके रिसीविंग सेन्टर पर, आपके रेडियो स्टेशन पर तरंगें पैदा की जा सकें तो आपका रिसीविंग सेंटर कहेगा कि आवाज हो रही है । इसलिए उस दस मिनट में जो आवाजें पकड़ी गई उनमें कोई शब्द नहीं पकड़े गए । सिर्फ रोने, हंसने, शोरगुल की आवाजें थीं वे । कोई शब्द नहीं है स्पष्ट । शब्द स्पष्ट पैदा करना बहुत कठिन है। लेकिन इस तरह की तरंगें पैदा की जा सकती है कि वे रोने, चिल्लाने, शोर-गुल की आवाजें पैदा कर दें। वे तरंगे ही पैदा की गई हैं। वे तरंगे पैदा करने के लिए वाणी की जरूरत नहीं है। तरंगें पैदा करने के दो ही उपाय है। या सीधी तरंगें पैदा कर दी जाएं या किसी मनुष्य के यंत्र का उपयोग किया जाए। भामतीर
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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