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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-११ ३५१ उत्तर : असल बात यह है कि यह होगा । यह बड़ी बात है। बड़ी इसलिए है कि कौन सा व्रत ? एक आदमी व्रत लिए है पांच बार माला फेर लेना । एक आदमी चोरी करने जा रहा है। यह प्रत्येक घटना पर निर्भर करेगा कि क्या व्रत या क्या अव्रत ? लेकिन कुल कीमत की बात इतनी है कि आदमी जो भी कर रहा है, उसके प्रति उसे जागकर करना है। वह मन्दिर जा रहा हो तो भी जागना है, वेश्यालय जा रहा हो तो भी नागना है । जो भी करे उसे होशपूर्वक करना है। होशपूर्वक करने से जो शेष रह जाएगा वह धर्म है। जो मिट जाएगा, वह अधर्म है। प्रश्न : महावीर क्या इसी जागरूकता को पौष और क्षात्रधर्म मान रहे है या कोई और पौरुष है ? उत्तर । इसको ही, इससे बड़ा और कोई पौरुष नहीं है। नींद तोड़ने से बड़ा कोई पौरख नहीं है। प्रश्न : पर मापने यह मेद किया कि एक मार्ग आत्मसमर्पण का है, दूसरा पौष का है। उत्तर : हाँ, हां, नींद तोड़ना दोनों में बराबर है। मगर बिल्कुल ही अलगअलग रास्ते से नींद टूटेगी। समर्पण करने वाले की नींद अगर थोड़ा भी पौरुष हुआ तो नहीं टूटेगी। क्योंकि समर्पण करने में एकदम स्त्रीभाव चाहिए । यानी समर्पण करने में यही पौष होगा कि पौरुष बिल्कुल न हो। और पौरुष करने वाले में यही पौरुष होगा कि उसमें समर्पण का भाव न हो जरा भी। महावीर के हाथ तुम किसी के प्रति नहीं जुड़वा सकते हो। तुम कल्पना ही नहीं कर सकते हो कि यह आदमी हाथ जोड़े हुए खड़ा हो कहीं। प्रश्न : वह अपने आन्तरिक शत्रुओं से लड़ा, यह पोरष नहीं है ? उत्तर : नहीं, नहीं, कोई आन्तरिक शत्रु नहीं है सिवाय निद्रा के, मूर्छा के, प्रमाद के । इसलिए महावीर से कोई पूछे : धर्म क्या है ? वह कहेंगे : अप्रमाद । और अधर्म क्या है ? वह कहेंगे : प्रमाद। कोई पूछे कि साधुता क्या है ? वह कहेंगे : अमूर्छा। असाधुता क्या है : वह कहेंगे : मूर्छा। और सारी साधना का सूत्र है विवेक । कैसे कोई जागे, कैसे कोई होश से भरा हुआ हो तो महावीर का पौरुष काम, क्रोध, लोभ से लड़ने में नहीं है । क्योंकि ये तो लक्षण हैं सिर्फ । इनसे पागल लड़ेगा। इनसे महावीर नहीं लड़ सकता। मूर्छा है मूल वस्तु । काम, क्रोध, लोभ, सब उससे पैदा होते हैं। जैसे कि तुम्हें बुखार चढ़ा। अगर
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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