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________________ १५ महावीर को खोजने का एक ढ़ंग तो यह है कि महावीर के सम्बन्ध में जो परम्परा है, जो शास्त्र है, जो शब्द संग्रहीत है, हम उसमें जाएं। और उस सारी परम्परा के गहरे पहाड़ को तोड़ें, खोजें और महावीर को पकड़ें कि कहाँ हैं महावीर । महावीर को हुए ढाई हजार साल हुए । ढाई हजार सालों में " जो भी लिखा गया महावीर के सम्बन्ध में, हम उस सबसे गुजरें और महावीर तक जाएँ । यह शास्त्र के द्वारा जाने का रास्ता है जैसा कि आम तौर से जाया जाता है । लेकिन, मैं मानता हूं कि इस मार्ग से कभी जाया ही नहीं जा सकता । कभी भी नहीं जाया जा सकता। आप जहां पहुंचेंगे उसका महावीर से कोई सम्बन्ध ही नहीं होगा । उसके कारण हैं। थोड़े हमें समझ लेने चाहिएं । 'प्रवचन- १ महावीर ने जो अनुभव किया है, किसी ने भी जो अनुभव किया, उसे शब्द में कहना कठिन है । पहली बात है । जिसे भी कोई गहरा अनुभव हुआ है, वह शब्द को असमर्थता को एकदम तत्काल जान पाता है कि बहुत मुश्किल होगी । परमात्मा का, सत्य का, मोक्ष का अनुभव तो बहुत गहरा अनुभव है । साधारण सा प्रेम का अगर किसी व्यक्ति को हुआ हो तो वह पाता है कि क्या कहूँ ? नहीं, शब्द में नहीं कहा जा C अनुभव भी कैसे कहूँ ? सकता । प्रेम के सम्बन्ध में अक्सर वे लोग बातें करते रहेंगे जिन्हें प्रेम का 1 । अनुभव नहीं हुआ है जो प्रेम के सम्बन्ध में बहुत आश्वासन से बातें करता हो, समझ ही लो कि उसे प्रेम का अनुभव नहीं हुआ है क्योंकि प्रेम के अनुभव के बाद हैजीटेशन आएगा, आश्वासन • नहीं रह जाएगा । बहुत डरेगा वह, चिन्तित होगा कि कैसे कहूँ ? क्या कहूँ ? कहता हूँ तो गड़बड़ हो जाती है सब | कहना चाहता हूँ वह पीछे छूट जाती हैं। जो कभी सोचा भी नहीं था वह शब्द से निकल जाता है । जितनी गहरी अनुभूति, उतने ही थोथे और व्यर्थ हैं शब्द । क्योंकि शब्द है सतह पर निर्मित । और शब्द हैं उनके द्वारा निर्मित जो सतह पर जिए हैं। अब तक सन्तों की कोई भाषा विकसित नहीं हो सकी है। जो भाषा है वह साधारण जनों की है उस भाषा में असाधारण अनुभव को डालना ऐसा ही कठिन है जैसा कि हम संगीत सुनें, जैसा कि हम संगीत सुनें और कोई बहरा आदमी कहे कि संगीत को मैं सुन पेन्ट कर दो, चित्र बना दो ! तो मैं शायद थोड़ा जाए संगीत को पेन्ट करने के लिए? कैसे पेन्ट करें, नहीं सकता तो तुम संगीत को समझ जाऊं। क्या किया की है कोशिश लोगों
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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