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________________ १४ महावीर : मेरी दृष्टि में कुछ सिद्ध करने को आतुर हैं। नासमझ इन अर्थों में कि उनमें समझने की उतनी उत्सुकता नहीं, जितनी कुछ सिद्ध करने की। ___ एक व्यक्ति हैं, वे आत्मा के पुनर्जन्म पर शोध करते हैं । मुझे किसी ने उनसे मिलाया तो उन्होंने मुझसे कहा; हिन्दुस्तान के बाहर न मालूम कितने . विश्वविद्यालयों में वह बोले हैं। यहां के एक विश्वविद्यालय से सम्बन्धित हैं। एक उस विश्वविद्यालय में विभाग भी बना रहे हैं जो पुनर्जन्म के सम्बन्ध में खोज करता है। कुछ मित्र उन्हें लाए थे मेरे पास मिलाने । बीस-पचीस मित्र इकट्ठे हो गए थे। आते ही उनसे बात हुई तो मैंने उनसे पूछा आप क्या कर रहे हैं ? तो उन्होंने कहा कि मैं वैज्ञानिक रूप से सिद्ध करना चाहता हूँ कि आत्मा का पुनर्जन्म है। मैंने कहा कि एक बात मैं निवेदन करूं कि अगर वैज्ञानिक रूप से सिद्ध करना चाहते हैं, तो ऐसा कहते ही आप अवैज्ञानिक हो गए। वैजानिक होने की पहली शर्त है कि हम कुछ सिद्ध नहीं करना चाहते, जो है उसे जानना चाहते हैं। वैज्ञानिक होना है तो आपको कहना 'चाहिए हम जानना चाहते हैं कि आत्मा का पुनर्जन्म होता है या नहीं होता है। आप कहते हैं कि यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध करना चाहता है कि मात्मा का पुनर्जन्म होता है तो आपने पहले ही मान लिया है कि पुनर्जन्म होता है। अब सिर्फ सिद्ध करने की बात रह गई सो आप वैज्ञानिक रूप से सिख कर सकते हैं । तो अवैज्ञानिक आप हो ही गए । तो मैंने कहा इसमें विज्ञान का नाम पीछे मत डालें, व्यर्थ है । वैज्ञानिक बुद्धि कुछ भी सिद्ध नहीं करना चाहती; जो है, उसे जानना चाहती है। और शास्त्रीय बुद्धि इसलिए अवैज्ञानिक हो गई कि वह कुछ सिद्ध करना बाहती है, जो है उसे जानना नहीं चाहती। . . जो है, हो सकता है हमारे मन में समझने-सोचने से बिल्कुल भिन्न हो, विपरीत हो। इसलिए शास्त्रीय बुद्धि का आदमी परम्परा से बंधा है, सम्प्रदाय से बंधा है, भयभीत है, सत्य पता नहीं कैसा है ? और सत्य कोई हमारे अनुकूल ही होगा; यह जरूरी नहीं। और अनुकूल ही होता तो हम कभी का सत्य में मिल गए होते । सम्भावना तो यही है कि वह प्रतिकूल होगा। हम असत्य है, वह प्रतिकूल होगा। लेकिन, हम सत्य को अपने अनुकूल ढालना चाहते हैं, तब सत्य भी असत्य हो जाता है। सब शास्त्रीय बुद्धियां असत्य की तरफ ले जाती है । तो मेरी बात न मालूम कितने तलों पर मेल नहीं खाएगी ? मेल खा जाए कभी तो यही आश्चर्य है। खा जाए तो वह संयोग की बात है। न खाना बिल्कुल स्वाभाविक होगा। फिर शास्त्र से मेरी पकड़ नहीं है। ..
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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