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________________ ३३८ महावीर : मेरी दृष्टि में होकर आए हो। वह कहे : क्या पागलपन की बाते हैं ! मैं यहीं सोया था, यहीं जगा हूँ। सिर्फ श्रीनगर से गुजर जाना काफी नहीं है, होश से गुजर जाना जरूरी है। नहीं तो वह आदमी क्लोरोफार्म की हालत में श्रीनगर घूम भो गया और फिर दिल्ली पहुँच कर कहेगा कि मैंने श्रीनगर देखा ही नहीं। मेरे मन में लालसा रह गई श्रीनगर को देखने की। वह मैं देख नहीं पाया । वह कैसा है श्रीनगर ? इसी तरह हम मृत्यु से मूच्छित गुजरते हैं, इसलिए मृत्यु से अपरिचित रह जाते हैं। जो मृत्यु से परिचित हो जाए वह आत्मा के अमर स्वरूप को जान लेता है। हम सेक्स से मूच्छित गुजरते हैं, इसलिए हम सेक्स से अपरिचित रह जाते हैं । जो सेक्स से परिचित हो जाए, वह ब्रह्मचर्य को जान लेता है। तो मेरा कहना है कि किसी भी स्थिति से अगर हम जागे हए गुजरे है तो सब बदल जाएगा क्योंकि जो हम जानेंगे, वह बदलाहट लाएगा। अगर आपने एक बार किसी का हाथ पकड़ कर चूमा है और बहुत आनन्दित हुए हैं तो दुबारा फिर उस हाथ को होश से चूमें, जागे हुए चूमें और देखें कि आनन्द कहाँ आ रहा है, कैसा आ रहा है, मा रहा है कि नहीं आ रहा है। एक दिन बुद्ध एक सड़क से गुजर रहे हैं। एक मक्खी उनके कन्धे पर बैठ गई है। आनन्द से बातें कर रहे हैं। मक्खी को उड़ा दिया है। फिर रुक गए हैं। मक्खी तो उड़ गई। आनन्द चौंक कर खड़ा हो गया कि वह क्यों रुक गए ? फिर, बहुत धीरे से हाथ को ले गए कंधे पर। आनन्द ने पूछा कि आप यह क्या कर रहे हैं, मक्खी तो उड़ चुकी है। बुद्ध ने कहा कि वह जरा गलत उंग से उड़ा दी मैंने। मैं तुम्हारी बातों में लगा रहा और बेहोशी में मक्खी उड़ा दो मैंने। अब मैं जागे हुए ऐसे उड़ा रहा हूँ जैसे उड़ाना चाहिए था । यह मक्खी के साथ दुर्व्यवहार हो गया। मैं मूच्छित था, इसलिए दुर्व्यवहार हो गया। अब मैं जागकर उड़ा रहा हूँ। तो किसी का हाथ चूमा, और बहत आनन्द आया। फिर दुबारा हाथ पकड़ लें और पूर्ण होशपूर्वक चूमें और देखें कि कौनसा आनन्द कहाँ आ रहा है तब बहुत हैरान हो जाएंगे। तब देखेंगे कि हाप है, होठ है, चुम्बन है मगर आनन्द कहाँ ? और यह जो अनुभव जागा हुआ होगा, यह जो हाथ का पागल आकर्षण होगा वह विलीन हो सकता है, बिल्कुल विलीन हो सकता है। . एक बार किसी भी अनुभव से होशपूर्वक गुजर जाएं तो उस अनुभव को पकड़ आप पर वो नहीं हो सकती जो आपकी बेहोशी में थी। तरकीब यह है प्रकृति की कि उसने सब कोमती अनुभव आपको बेहोशो में गुजरवाने का
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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