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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-११ ३३९ इन्तजाम किया है। क्योंकि नहीं तो आप फिर नहीं गुजरेंगे उससे । और सेक्स प्रकृति की गहरी जरूरत है। वह सन्तति उत्पादन की व्यवस्था है। वह नहीं चाहती कि आप उसको छुएं, उसमें कुछ गड़बड़ करें। वहीं मे जाकर वह आपको एकदम बेहोशी की हालत में कर देती है। जिसको आप आमतौर से प्रेम आदि कहते हैं, वह सब बेहोश होने की तरकीबें हैं, और कुछ भी नहीं। आपको वेश्या के साथ सम्भोग करने में वह सुख नहीं मिलता जो अपनी प्रेयसी से सम्भोग करने में मिलता है। कारण कि वेश्या के पास आपकी मूर्छा कभी गहरी नहीं हो पाती क्योंकि यह धन्धा सौदे का काम है। दस रुपया फेंक कर सम्बन्ध बनाया। कोई सम्मोहित होने का सवाल नहीं है बड़ा। इसलिए वेश्या वह तृप्ति नहीं दे पाती जो प्रेयसी देती है। वह पत्नी भी नहीं दे पाती क्योंकि पत्नी के पास रोज-रोज गुजरने से मूच्छित होने का कारण नहीं रह जाता। वह सम्बन्ध बिल्कुल यांत्रिक हो गया है। लेकिन प्रेयसी के पास आपको पहले मूच्छित होना पड़ता है, उसे मूच्छित करना पड़ता है। प्रेमक्रीडा से गुजरने के पहले सारा गोरख-धन्धा एक दूसरे को मूच्छित करने का उपाय है, चूमना है, चाटना है, गले मिलना है, कविताएं सुनाना है, गीत गाना है, अच्छी-अच्छी बातें करना है, एक दूसरे को तारीफ करना है, एक दूसरे को सम्मोहित करना है । जब वे दोनों सम्मोहन में आ गए तब फिर ठीक है । तब वे बेहोश गुजर सकते हैं। यह जो मेरा कहना हैं वह कुल इतना है कि ऐसी किसी भी क्रिया से जिससे हम मुक्त होना चाहते हों कभी भी हम मूच्छित हालत में मुक्त नहीं हो सकते । और पाखण्ड मूच्छित हालत को थोड़े ही तोड़ता है, उल्टा भ्रम पैदा करवा देता है। और गलत चीजें हमें पकड़ा देता है। लेकिन हम पकड़ते ऐसे ढंग से हैं कि हमें ख्याल में नहीं आता। जैसे महावीर हैं । अगर महावीर स्त्रियों को छोड़कर जंगल चले गए हैं तो हमें लगता है कि हम भी स्त्रियों को छोड़ें और जंगल चले जाएँ। हम महावीर की बुनियादी बात समझना भूल गए हैं। महावीर इसलिए जंगल नहीं चले गए हैं कि स्त्रियों को छोड़े जा रहे हैं। वे इसलिए जंगल चले गए हैं कि स्त्रियों में कोई रस नहीं रहा है। वे पब जंगल जा रहे हैं तो पीछे स्त्रियों की स्मृति नहीं है. उनके मन में। और बाप भी जंगल जा रहे हैं स्त्रियों को छोड़कर लेकिन जितनी स्मृति कभी घर पर नहीं थी, उतनी जंगल में आपको घेरे हुए है। और आप समझ रहे हैं कि आप वही काम कर रहे हैं जो महावीर कर रहे हैं । आप भी जंगल में जाकर बैठ
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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